भले ही देश 1947 को आजाद हो गया था लेकिन गोवा 1961 में आजाद हुआ। और इसे आजाद कराने के लिए लगातार अलग-अलग आंदोलन होते रहे। क्योंकि ये पुर्तगालियों के कब्जे पर था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शेख रज्जब बताते हैं कि गोवा को आजाद कराने के लिए जबलपुर से भी 19 लोगों का एक जत्था गोवा में 15 अगस्त 1955 को डोंडामार बॉर्डर से पहुंचा, इस जत्थे के नेता थे एन के पाठक, और इसी जत्थे में शामिल थे वो और उनके बड़े भाई। रज्जब बताते हैं कि लगभग 35 मील सभी रुकावटों को पार करते हुए पैदल चलते हुए डोंडामार बॉर्डर से उनका जत्था 15 अगस्त को गोवा में घुस जाता है और पुर्तगाली राष्ट्रपति के खिलाफ नारे लगाने लगते हैं, सालाजार मुर्दाबाद, गोवा हिंदुस्तान का है। पुर्तगाली सैनिक उन्हें रोकते हैं उन्हें मारने की कोशिश करते हैं। उन पर जल्म करते हैं।
पुराने दिनों को याद करते हुए शेख रज्जब बताते हैं कि जब वो आंदोलन से वापस लौट रहे थे हर स्टेशन में स्वागत करने वालों की लंबी-लंबी भीड़ लग जाती थी। छोटे से छोटे स्टेेशन में भी हजार-हजार लोग स्वागत के लिए फूल माला के साथ खड़े मिलते थे। देश सेवा के बाद जो सम्मान उन्हें मिला उसने उन्हें वो सारे जुल्म भुला दिए जो सहकर वो ट्रेन से लौट रहे थे। शेख रज्जब कहते हैं कि फूल मालाओं से उनके सिर भर जा रहे थे। अपने पुराने दिनो को याद करते समय 89 साल के हो चुके रज्जब के चेहरे में एक अलग ही चमक दिख रही थी। उनकी आंखों में कभी आंसू तो कभी एक उम्मीद दिख रही थी।
भारत तो 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था। लेकिन ब्रिटिश और फ्रांस के सभी औपनिवेशिक अधिकारों के खत्म होने के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों का ही शासन था। भारत सरकार की बार-बार बातचीत की मांग को पुर्तगाली ठुकरा दे रहे थे। जिसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत सेना की छोटी टुकड़ी भेजी 18 दिसंबर 1961 के दिन ऑपरेशन विजय की कार्रवाई की गई। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी समुद्री और हवाई हमले हुए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया।