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शाहडोल

गोवा को आजाद कराने के लिए किया आंदोलन, सर पर बंदूक से वार, फिर भी नहीं मानी हार

पुर्तगालियों ने किए जुल्म, लेकिन इन्होंने तिरंगे को नहीं गिरने दिया

शाहडोलJan 09, 2018 / 04:46 pm

Shahdol online

Movement to liberate Goa war with gun on the head

Movement to liberate Goa war with gun on the head

शहडोल- गोवा छोड़ो सालाजार, गोवा हिंदुस्तान का है, शहर के पुरानी बस्ती में रहने वाले शेख रज्जब अपने आंदोलन के दिनों के इन नारों के साथ ही बीते दिनों के किस्से बताने लगते हैं।
रज्जब बताते हैं गोवा को आजाद कराने के लिए उन्होंने 15 अगस्त के ही दिन 1955 में आंदोलन किया था। जहां उन्होंने कई जुल्म सहे, लेकिन तिरंगे को नीचे नहीं गिरने दिया। वो कहते हैं देश प्रेम और देश के लिए कुछ करने की तम्मन्ना उनमें शुरुआत से ही थी। इसीलिए इस आंदोलन में जब उन्हें मौका मिला तो उन्होंने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। और गोवा को आजाद कराने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
उनके साथ इस आंदोलन में उनके बड़े भाई भी शामिल थे।
जब छेड़ दिया आंदोलन
भले ही देश 1947 को आजाद हो गया था लेकिन गोवा 1961 में आजाद हुआ। और इसे आजाद कराने के लिए लगातार अलग-अलग आंदोलन होते रहे। क्योंकि ये पुर्तगालियों के कब्जे पर था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शेख रज्जब बताते हैं कि गोवा को आजाद कराने के लिए जबलपुर से भी 19 लोगों का एक जत्था गोवा में 15 अगस्त 1955 को डोंडामार बॉर्डर से पहुंचा, इस जत्थे के नेता थे एन के पाठक, और इसी जत्थे में शामिल थे वो और उनके बड़े भाई। रज्जब बताते हैं कि लगभग 35 मील सभी रुकावटों को पार करते हुए पैदल चलते हुए डोंडामार बॉर्डर से उनका जत्था 15 अगस्त को गोवा में घुस जाता है और पुर्तगाली राष्ट्रपति के खिलाफ नारे लगाने लगते हैं, सालाजार मुर्दाबाद, गोवा हिंदुस्तान का है। पुर्तगाली सैनिक उन्हें रोकते हैं उन्हें मारने की कोशिश करते हैं। उन पर जल्म करते हैं।
लेकिन वो तिरंगे को नीचे नहीं गिरने देते हैं। एक के हाथ से तिरंगा छूटता है तो दूसरा उसे अपने हाथ में थाम लेता है। उन्हें एक दिन तक जेल में भी बंद किया गया। रात भर उन पर जुल्म किए गए। पैर में चाकू से वार किया गया। सिर पर बंदूक की नोक से वार किया गया। शेख रज्जब बताते हैं कि फिर भी उनके पूरे जत्थे ने हिम्मत नहीं हारी लगातार नारे लगाते रहे। जितना उन पर जुल्म किया जा रहा था। वो उतनी तेजी के साथ बुलंद आवाज में गोवा छोडऩे के नारे लगा रहे थे।
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IMAGE CREDIT: patrika
वहां से लौटने के बाद जो सम्मान मिला उसने सब भुला दिया
पुराने दिनों को याद करते हुए शेख रज्जब बताते हैं कि जब वो आंदोलन से वापस लौट रहे थे हर स्टेशन में स्वागत करने वालों की लंबी-लंबी भीड़ लग जाती थी। छोटे से छोटे स्टेेशन में भी हजार-हजार लोग स्वागत के लिए फूल माला के साथ खड़े मिलते थे। देश सेवा के बाद जो सम्मान उन्हें मिला उसने उन्हें वो सारे जुल्म भुला दिए जो सहकर वो ट्रेन से लौट रहे थे। शेख रज्जब कहते हैं कि फूल मालाओं से उनके सिर भर जा रहे थे। अपने पुराने दिनो को याद करते समय 89 साल के हो चुके रज्जब के चेहरे में एक अलग ही चमक दिख रही थी। उनकी आंखों में कभी आंसू तो कभी एक उम्मीद दिख रही थी।
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IMAGE CREDIT: patrika
ऑपरेशन विजय से गोवा हुआ आजाद
भारत तो 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था। लेकिन ब्रिटिश और फ्रांस के सभी औपनिवेशिक अधिकारों के खत्म होने के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों का ही शासन था। भारत सरकार की बार-बार बातचीत की मांग को पुर्तगाली ठुकरा दे रहे थे। जिसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत सेना की छोटी टुकड़ी भेजी 18 दिसंबर 1961 के दिन ऑपरेशन विजय की कार्रवाई की गई। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी समुद्री और हवाई हमले हुए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया।

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