scriptआजादी के 77 साल बाद यहां के लोग बोले- ‘पानी है नहीं, बिजली देखी नहीं, स्कूल और पक्की सड़क कैसी होती है पता नहीं’, झकझोर देगा Video | 77 years after independence Patbai Villagers said There is no water haven not seen electricity dont know about school and road see video | Patrika News
शिवपुरी

आजादी के 77 साल बाद यहां के लोग बोले- ‘पानी है नहीं, बिजली देखी नहीं, स्कूल और पक्की सड़क कैसी होती है पता नहीं’, झकझोर देगा Video

– आजादी के 77 साल बाद भी पानी, बिजली, सड़क और शिक्षा का अभाव
– ‘पानी है नहीं, बिजली देखी नहीं, स्कूल और पक्की सड़क कैसी होती है? पता नहीं’
– बदरवास का आदिवासी गांव पटबई के बुरे हाल
– विकास के दावों की पोल खोलती पत्रिका की ग्राउंड रिपोर्ट

शिवपुरीMay 23, 2024 / 01:51 pm

Faiz

water crisis
संजीव जाट की रिपोर्ट

एक तरफ जहां भारत देश विज्ञान और आधुनिकता के दौर में कदम रखते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इसी देश के कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जो आजादी के 77 साल बाद भी सरकारी दावों की पोल खोलते हुए मूलभूत जरूरतों तक को तरस रहे हैं। खासतौर पर यहां कई ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अब भी लोग स्वच्छ पानी, बिजली, सड़र और शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों ( basic rights ) तक के लिए तरस रहे हैं। ऐसे विकास के दावों ( development claims ) की पोल खोलता एक नजारा मध्य प्रदेश ( MP news ) के शिवपुरी जिले ( Shivpuri District ) के अंतर्गत आने वाले बदरवास ( Badarwas ) क्षेत्र में पत्रिका के कैमरे में कैद हुआ। ये नजारा ऐसा है, जिसे देख आप यकीन नहीं कर सकेंगे कि क्या ये क्षेत्र भी भारत का ही हिस्सा है।
हम बात कर रहे हैं जिले के बदरवास जनपद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अंतिम छोर पर बसे राजस्थान सीमा से लगे हुए सालोन पंचायत के पटबई गांव की। गांव में आजादी के 77 साल बाद भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। एक तरफ सरकार हर घर में नल से स्वच्छ जल पहुंचाने का दावा करते हुए देशभर में अमृत महोत्सव मना रही है तो वहीं, दूसरी तरफ भारत के दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में इसी अमृत महोत्सव को चिड़ाती सुविधाओं से कोसों दूर गांव पटबई से परेशान कर देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। यहां हालात इतने खराब हैं कि ग्रामीणों का कहना है कि ‘यहां पानी है नहीं, बिजली उन्होंने कभी देखी नहीं, स्कूल और पक्की सड़क कैसी होती है ? उन्हें इस बारे में पता ही नहीं है।’
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बूंद – बूंद पानी को तरसते ग्रामीण

पटबई गांव में रहने वाले ग्रामीण आज भी बूंद – बूंद पानी को मोहताज हैं। गांव में पानी न होने के कारण ये ग्रामीण गांव से एक किलोमीटर दूर कूनो नदी में जगह – जगह गड्ढे खोदकर उससे पानी भरकर लाने को मजबूर हैं। इससे ऐसी दफ्तरों में बैठे फ्रिज का ठंडा पानी पीते हुए अफसर अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां के ग्रामीण अपने सूखे कंठ की प्यास बुझाने के लिए कितनी मुस्किलों का सामना करते हैं।

पत्रिका की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया दुखी करने वाला सच

हालात का जायजा लेने गांव पटबई पहुंचे पत्रिका प्रतिनिधि ने ग्राउंड रिपोर्टिंग की तो अंदाजा हुआ कि एक तरफ तो देश की आजादी को 77 साल हो चले है और राजनैतिक दलों द्वारा विकास के बड़े – बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन विकास से अछूता ये गांव एक किलो मीटर दूर से कच्ची टेढ़ी – मेढ़ी सड़क पर डगमग होते हुए पानी लाकर भी प्यासे ही नजर आते हैं। ये लोग इतनी जद्दोजहद के बाद भी दूषित पानी पीकर ही जैसे तैसे अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनका आधा दिन तो पानी लाने में ही गुजर जाता है। गांव में एकमात्र हैंडपंप था, जो खराब हो चुका है। अब भीषण गर्मी के बीच जब सूरज अपना रौद्र रूप दिखा रहा है तो पानी के लिए तरसते ग्रामीणों के चेहरे पर चिंता की लकीर साफ साफ दिखाई दे रही है।
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कभी नहीं देखी बिजली, अंधेरे में ही गुजर गया जीवन

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बदरवास जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत सालोन की आदिवासी बस्ती पटबई घाट, जिसकी जनसख्या 350 है। इस गांव में हर बार चुनाव के दौरान नेता तो आते हैं, लेकिन आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। गांव में विद्युत लाइन ही नहीं है तो फिर लाइट होने का सवाल ही नहीं है। हालात ये हैं कि ग्रामीण रोज बिजली लाइन बिछने की आस में अंधेरे में ही अपना गुजर बसर कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में लाइट पहुंचना तो मानों हमारे लिए किसी सपने के समान है।

सड़क पर कभी चले नहीं

पटवई गांव की समस्याओं में इजाफा यहां पहुंचने का रास्ता भी करता है। गांव में आने का पहुंच मार्ग भी उबड़ खाबड़ है, जहां हिचकोले खाते हुए ग्रामीण अपनी दिनचर्या गुजारते हैं। पक्का रास्ता तो दूर की बात गांव में किसी भी राह पर अबतक मुरम भी नहीं डाली गई है। खेतों के पथरीले रास्तों से गुजरते – गुजरते यहां के ग्रामीणों का जीवन गुजर चुका है, लेकिन पक्के रोड की आस अब तक पूरी नहीं हो सकी है। ग्रामीण पीढ़ी दर पीढ़ी आजादी के बाद 77 वर्षो से इसी तरह लगाए हुए हैं, कभी तो कोई उनकी और उनके गांव की सुध लेने आएगा !

हाईटेक दौर में शिक्षा से वंचित नौनिहाल

पटबई गांव की इस आदिवासी बस्ती में न तो स्कूल है और न ही बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक। गांव में स्कूल न होने से यहां के नौनिहाल बच्चे शिक्षा जैसे सबसे मूलभूत अधिकार से भी वंचित हैं। गांव के बच्चे शिक्षा के अभाव में ज्ञान के प्रकाश के बिना अंधेरे में ही जीन गुजार रहे हैं। इस गांव के बच्चों को अगर पढ़ाई करना है तो तीन किलो.मीटर दूर चमारी नदी पार करके समीपस्थ गांव में पढ़ने के लिए जाने को मजबूर हैं।
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पलायन को मजबूर ग्रामीण

पटबई गांव समेत पास के अन्य गांव के में रहने वाले ग्रामीण पानी, सड़क, बिजली और शिक्षा के अबाव में ही जीवन गुजारने को मजबूर हैं। आलम ये है कि शासन प्रशासन विकास के ढोल बजाकर अपने गाल झूठमूठ में ही फुला रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं से वंचित और अभावों से भरे जीवन से जूझते ग्रामीण अब पलायन करने तक को मजबूर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि आखिर पलायन क्यों न करें। गांव में न तो रोजगार के कोई साधन हैं और न ही जीविका चलने के लिए अन्य कोई माध्यम। आमतौर पर गांव के नौजवान मजदूरी करने गुजरात तक जाते हैं।

क्या कहते है ग्रामीण ?

पटबई गांव में रहने वाले ग्रामीण राजगोपाल भिलाला का कहना है कि हमारे गांव में स्कूल नहीं होने से आधे बच्चे तो बगैर शिक्षा के रह जाते हैं, क्योंकि ये लोग जिस स्कूल में पढ़ने जाते हैं वो गांव से सात किलोमीटर दूर है और रास्ता इतना दूभर है कि मानों स्कूल पहुंचने में बच्चों का 70 किलोमीटर के बराबर परीश्रम लग जाता है।

कुनो नदी से भरकर ग्रामीण लाते हैं पानी

पटबई गांव के ही एक अन्य ग्रामीण नाहर सिंह भिलाला का कहना है कि हमें आजादी के बाद आशा थी कि हमारे गांव में पानी की व्यवस्था होगी एवं बिजली की लाइन आएगी एवं स्कूल बनेगा लेकिन यह आशा थी कि अब तो गांव के हालात सुधर जाएंगे, लेकिन अब 77 साल होने पर हमारे गांव की हालात नहीं बदली। प्रशासन से हमें जो तारीखें दी थीं वो भी पूरी नहीं हुई और हमें पीने का पानी भी कुनो नदी से भरकर लाना पड़ता है।
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कई बार लगा चुके गुहार, पर…

वहीं, इस संबंध में सरपंच प्रतिनिधि महेंद्र गुर्जर का कहना है कि, गांव की जो समस्या है वो बेहद जटिल है और जिसे बिजली की समस्या है तो ये बिजली विभाग के द्वारा इसका काम किया जाना है पानी की समस्या के लिए हमने विभाग को लगातार पत्र लिख रहा है और लाइट, पानी, स्कूल भी है तो वह काफी दूर है इन सब सुविधाओं के लिए हम लगातार मांग कर रहे हैं और जो रास्ता है जो खराब है या नहीं, बना है उसके लिए हम हमारे जनपद पंचायत से डलवाने का प्रयास कर रहे हैं

क्या कहते है कलेक्टर ?

मामलो को लेकर शिवपुरी कलेक्टर रविंद्र चौधरी का कहना है कि मामला सज्ञान में आया है, आखिर सुविधाओं से वंचित क्यों रहा, इसकी जांच कराते हैं। देखे हैं यहां के ग्रामीणों को अबतक लाभ क्यों नहीं मिला।

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