11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

महाकुंभ की शान हैं 13 अखाड़े

कोई परंपरा तो किसी ने कार्यशैली के कारण बनाई विशेष पहचान, हर अखाड़े की अपनी विशेषता।22 अप्रैल को बजेगा सिंहस्थ  का बिगुल।

5 min read
Google source verification

image

simhastha simhastha

Feb 22, 2016

उज्जैन. सामान्य रूप से सभी अखाड़े समान लगते हैं, लेकिन हर अखाड़ा अपने आप में खास है। खासियत भी ऐसी जो फिर किसी दूसरे अखाड़े में नहीं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण यह अपने क्षेत्र में सिरमौर है, उनका कोई भी सानी नहीं है। यह इनका गर्व भी है। कुंभ-सिंहस्थ की दृष्टि से मुख्य तौर पर साधु-संतों के 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं। इनमें सात संन्यासी, तीन उदासीन और तीन वैष्णव के अणि अखाड़े हैं। वैसे तो परंपरा, मान्यता और उद्देश्य को लेकर इनमें कई समानता है, लेकिन कुछ की अपनी-अपनी ऐसी विशेषताएं भी हैं जिसके कारण वह दूसरों से अलग नजर आते हैं। कोई महामण्डलेश्वर या खालसों की संख्या में नंबर वन है तो कोई शिक्षित महामण्डलेश्वरों के मामले में। किसी अखाड़े में एक भी साध्वी नहीं है तो कोई खिलाडिय़ों के मामले में सबसे आगे है। इनकी इस विशेषता को अन्य अखाड़े भी स्वीकार करते हैं।

जानिए किस अखाड़े की क्या है खूबियां...



यहां कोई भी धूम्रपान नहीं करता
सिंहस्थ में साधुओं का चिलम खींचते मिलना आम है। इसके लिए साधु-संतों के अपने-अपने तर्क भी हैं लेकिन निर्मला ऐसा अखाड़ा है जहां महामण्डलेश्वर या प्रमुख पदाधिकारी ही नहीं, कोई नागा-संन्यासी धूम्रपान नहीं करता है। अखाड़े में धूम्रपान पूरी तरह प्रतिबंधित है। देश में इस अखाड़े के सभी केंद्रों पर गेट पर ही इसकी सूचना भी लिखी रहती है।

इस अखाड़े में नहीं एक भी साध्वी
समय के साथ अखाड़ों में साध्वियों की संख्या बढ़ी है। यहां तक कि कुछ अखाड़ों में महिला
महामण्डलेश्वरों की संख्या भी बढ़ गई है। यही नहीं अब तो पृथक से महिला अखाड़े का मुद्दा उठने लगा है। श्रीमहंत सत्यगिरि जी बताते हैं कि आवाहन अखाड़ा ऐसा अखाड़ा है, जहां महिला साध्वी नहीं है। अखाड़ा प्रमुख रहे दिवंगत नेपाली बाबा के समय तो आम महिला के आश्रम में आने तक पर मनाही थी।

यहां राजा बीच में चलता है
दिगंबरअणि अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का ऐसा अखाड़ा है, जिसमें सर्वाधिक खालसा हैं। वर्तमान में दिगंबर अणि में 431 खालसा हैं। शाही स्नान के दौरान भी निकलने वाली सवारी में इसका स्थान विशेष है। शाही स्नान के लिए जब तीनों अणि अखाड़े निकलते हैं तो इनमें निर्मोही व निर्वाणी के आने-जाने के क्रम में स्थान बदलता है, लेकिन दिगंबर हर स्नान में बीच में ही चला है। फिर स्नान के लिए जाना हो या स्नान कर दोबारा अखाड़े में लौटना हो। अखाड़े के स्थानीय महंत रामचंद्रदास महाराज के अनुसार दिगंबर अखाड़े को राजा भी कहा जाता है, इसलिए उसका स्थान निर्धारित रहता है। दिगंबर अणि में वैसे तो सबसे कम दो अखाड़े हैं, लेकिन साधु-संतों की संख्या काफी ज्यादा है।

यहां सर्वाधिक महामण्डलेश्वर
जूना अखाड़ा प्रभावशाली अखाड़ों में से एक है। शैव संप्रदाय में महामण्डलेश्वरों के मामले में यह अखाड़ा पहले पायदान पर है। सबसे अधिक महामण्डलेश्वर इसी अखाड़े में है। वर्तमान में जूना अखाड़े में करीब 275 महामण्डलेश्वर हैं। इनमें महिला और विदेशी महामण्डलेश्वर भी शामिल हैं। हाल में जैन साध्वी रही राजस्थान की चंदनप्रभा ने भी सनातन धर्म स्वीकार कर जूना अखाड़े की महामण्डलेश्वर बनी हैं। अखाड़े के कुछ प्रमुख महामण्डलेश्वरों का प्रभाव इतना व्यापक है कि इनके विदेशों में भी जूना अखाड़े के नाम से ही आश्रम हैं और कई विदेशियों ने सनातन धर्म स्वीकार किया है। वर्तमान में दस अखाड़ों से मिलकर बनी अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरिगिरि महाराज भी इसी अखाड़े से हैं।

जहां राम जन्मे वह क्षेत्र निर्मोहीअणि का
वैष्णव संप्रदाय का निर्मोहीअणि अखाड़ा राम जन्म भूमि के कारण विशेष रूप से जाना जाता है। महंत परमात्मादास बताते हैं कि राम जन्म भूमि अखाड़े के अधीन है। अखाड़े को यह भूमि मुगलों के राज में उपहार स्वरूप दी गई थी। यहां पुजारी भी निर्मोही के ही रहते हैं। वर्तमान में भी सीता रसोई व राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को मिला हुआ है। वर्तमान में अखाड़े में 80 खालसा हैं। उज्जैन में श्रीकृष्ण भगवान की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम का स्थान भी अखाड़े के अंतर्गत ही आता है। परमात्मादास महाराज का यह भी कहना है कि वैष्णव में सर्वाधिक खिलाड़ी (अखाड़ाबाजी, तलवारबाजी आदि) भी निर्मोही अखाड़े में ही हैं। इसके अलावा वैष्णव संप्रदाय की तीनों अणि में अखाड़ों की संख्या भी निर्मोहीअणि में सर्वाधिक है। साथ ही इस अणि में नौ अखाड़े शामिल हैं, जबकि दिगंबर में दो और निर्वाणीअणि में सात अखाड़े हैं।

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही बनते हैं साधु
शैव अंतर्गत अटल अखाड़ा भी दीक्षा देने के मामले में वर्ण का विशेष ध्यान रखता है। अखाड़े के सचिव श्रीमंहत धनराजगिरि महाराज ने बताया कि अखाड़े में ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य को ही दीक्षा दी जाती है। अन्य वर्ण के लोग इसमें शामिल नहीं होते हैं। अटल अखाड़े में अभी तीन से चार हजार साधु-संत हैं। महामण्डलेश्वर कम ही हैं।

महामण्डलेश्वर हैं एक से बढ़कर एक
निरंजनी अखाड़े में 50 महामण्डलेश्वर हैं। इनमें ज्यादातर उच्च शिक्षित हैं। महामण्डलेश्वर कॉलेज संचालित कर रहे हैं। वरिष्ठ पदाधिकारी शिक्षा को महत्व देते हैं इसलिए शिक्षण क्षेत्र में अखाड़े की भागीदारी बनी ही रहती है। दस अखाड़ों से मिलकर बनी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्रगिरि बई इसी अखाड़े के श्रीमंहत है। वह आश्रम में 200 विद्यार्थियों की शिक्षा की नि:शुल्क व्यवस्था करते हैं।

अग्नि में सिर्फ ब्रह्मचारी ब्राह्मण को ही दीक्षा
शैव संप्रदाय अंतर्गत अग्नि अखाड़ा दीक्षा परंपरा के मामले में सबसे अनूठा है। इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है। मसलन इस अखाड़े के सभी साधु-संत, महात्मा ब्राह्मण हैं। यही नहीं ब्राह्मण के साथ उनका ब्रह्मचारी होना भी जरूरी है। वर्तमान में अखाड़े में पांच महामण्डलेश्वर व एक आचार्य महामण्डलेश्वर हैं। अखाड़े के श्रीमहंत सुदानंद ब्रह्मचारी (लाला बाबा) ने बताया कि यह ब्रह्मचारी अखाड़ा है। एक ही वर्ण को दीक्षा देने के कारण इसमें साधुओं की संख्या तुलनात्मक कम है। इसी कारण से वर्तमान में इस अखाड़े में चार-पांच हजार साधु-संत हैं।

बड़ा उदासीन का मतलब सेवा व साधना
बड़ा उदासीन अखाड़े का मुख्य ध्येय सेवा, साधना और स्वाध्याय है जो इसे अन्य से अलग बनाता है। दिव्यांगों को उपकरण वितरण, नेत्र परीक्षण शिविर, भूकंप-बाढ़ आदि त्रासदी में पीडि़त और सरकार को सहयोग करने में अखाड़ा अग्रणी है। गुजरात भूकंप में अखाड़े ने प्रदेश सरकार को 25 लाख रुपए दिए थे। इसी तरह लातुर भूकंप, नेपाल भूकंप, उत्तराखंड में बाढ़ आदि आपदाओं के दौरान भी आर्थिक सहयोग व प्रभावितों को हजारों भोजन के पैकेट वितरित किए गए। यह सहयोग अखाड़ा अपने स्तर पर करता है। हाल में उज्जैन में ही दिव्यांगों के लिए शिविर लगाया गया था। अखाड़े के श्रीमहंत महेश्वरदास महाराज बताते हैं यहां पंच व्यवस्था भी दूसरों से जुदा है। अखाड़े में चार महंत होते हैं व वह कभी रिटायर नहीं होते।

पहलवानों से भरा है निर्वाणीअणि
अखाड़ा शब्द सुनते ही लगता है, जहां पहलवान तैयार होते हैं। इस मामले में वैष्णव संप्रदाय का निर्वाणीअणि अखाड़ा सबसे आगे हैं। अखाड़े में वास्तविक पहलवानों (कुश्तीबाज) की कोई कमी नहीं है। पहलवान भी कोई शौकिया नहीं बल्कि प्रोफेशनल हैं। अखाड़े के कई साधुओं ने प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर की कुश्तियों में भाग लेकर मेडल जीते हैं। वर्ष 2004 में अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बने ज्ञानदास महाराज स्वयं उत्तर प्रदेश केसरी रह चुके हैं। उनके कई शिष्य भी पहलवान हैं। स्थानीय श्रीमहंत दिग्विजयदास महाराज के अनुसार अखाड़े के वर्तमान श्रीमहंत धर्मदास महाराज कुश्ती में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुके हैं। अखाड़े के महासचिव गौरीशंकर महाराज भी पहलवान हैं। कुश्ती इस अखाड़े के लिए आम जीवन का हिस्सा-सा है।

बिना महामण्डलेश्वर वाला है अटल
महामण्डलेश्वर पद का अखाड़े में अलग ही महत्व होता है। प्रचलन में भी इस शब्द का काफी उपयोग होता है लेकिन अटल एक ऐसा अखाड़ा है, जिसमें किसी को भी आज तक महामण्डलेश्वर नहीं बनाया गया है। अखाड़े के सचिव श्रीमहंत उदयगिरि महाराज के अनुसार अटल अखाड़े में आचार्य पद होता है। वही सिंहस्थ या कुंभ में संस्कार करवाते है।

यहां बनते हैं 8 से 12 वर्ष के नागा
नागा बनाने की विशेष प्रथा, नया उदासीन अखाड़े की ऐसी खासियत है जो दूसरों से जुदा है। इसमे तांग तोड़ नागा बनाए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि नागा उन्हीं को बनाया जाता है जिनकी उम्र 8 से 12 वर्ष होती है। दाड़ी-मूंछ नहीं आती है। मुकामी महंत सर्वेश्वरमुनि महाराज के अनुसार अखाड़े में महामण्डलेश्वर बनाने में भी योग्यता परखी जाती है। वर्तमान में अखाड़े में करीब 13 महामण्डलेश्वर हैं।

महानिर्वाणी करता है महाकाल की भस्मारती
महाकाल का पूजन महानिर्वाणी अखाड़े की विशेषताओं में से एक है। बारह ज्योतिरलिंगों में से एक महाकाल की भस्मारती महानिर्वाणी अखाड़े के ही महंत-श्रीमहंत करते आ रहे हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। आज भी इस परंपरा के अनुसार महानिर्वाणी अखाड़े के महंत द्वारा ही प्रतिदिन भस्मारती की जाती है।

ये भी पढ़ें

image