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कविता-मचल मत, मत मचल

Hindi poem

Jan 15, 2022 / 03:09 pm

Chand Sheikh

कविता-मचल मत, मत मचल

कविता-मचल मत, मत मचल

सुनील कुमार महला

घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

कैसा यह समय है आया,
हर तरफ कोरोना का है साया।
बरत धैर्य और संयम, घर में ही चैन है।
डटा रह, डटा रह, डटा रह।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

नहीं रही अब कोई मोह और माया,
घर से निकल कर समय न कर जाया।
आज हवाएं हैं जहरीली,
तबीयत हो रही सबकी ढ़ीली।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

कोरोना की सुनामी फैल रही है।
सांसें भी अब फूल रही हैं।
मंदिर बंद हैं, मस्जिद बंद हैं, और बंद हैं गुरुद्वारे।
चर्च भी बंद है, कैसे लगेंगे किनारे।।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

अदृश्य शत्रु का वार भयानक।
इसकी तो है बयार भयानक।।
तांडव विश्व को करा रहा,
रूप बदलकर सबको ये डरा रहा।
दहशत इसकी भारी है,
डरी,सहमी दुनिया आज सारी है।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

अदृश्य कातिल है कब्रगाहों को सजाने को आतुर,
हे मानव! बन तू चतुर
न रख फितूर जरा भी मन में
न रह जरा भी तू वहम में।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
जिंदगी है इक नैमत्त
समझा तू इसकी कीमत,
कोरोना बना है दीमक
जिंदगी को चाट रहा, खौफ कैसा फैला है ?
कब्रगाहों में लगा जैसे कोई मेला है।

घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
समय को देख, देख समय की धार।
घर में बैठकर ही कर सकते हैं भयानक वार।
आशा को संपूर्ण कर,
सुख को भरपूर कर
जोश नया रगों मेंं भर
रख जज्बा जीने का, मत डर, मत डर

माना कि ये डगर कठिन है।
माना कि ये डगर कठिन है।
लेकिन मानव कब हारा है ?
सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान ईश्वर सबसे बड़ा सहारा है।
उम्मीद रख, रख उम्मीद
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।

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