डटा रह, डटा रह, डटा रह।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। नहीं रही अब कोई मोह और माया,
घर से निकल कर समय न कर जाया।
आज हवाएं हैं जहरीली,
तबीयत हो रही सबकी ढ़ीली।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। नहीं रही अब कोई मोह और माया,
घर से निकल कर समय न कर जाया।
आज हवाएं हैं जहरीली,
तबीयत हो रही सबकी ढ़ीली।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। कोरोना की सुनामी फैल रही है।
सांसें भी अब फूल रही हैं।
मंदिर बंद हैं, मस्जिद बंद हैं, और बंद हैं गुरुद्वारे।
चर्च भी बंद है, कैसे लगेंगे किनारे।।
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। कोरोना की सुनामी फैल रही है।
सांसें भी अब फूल रही हैं।
मंदिर बंद हैं, मस्जिद बंद हैं, और बंद हैं गुरुद्वारे।
चर्च भी बंद है, कैसे लगेंगे किनारे।।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। अदृश्य शत्रु का वार भयानक।
इसकी तो है बयार भयानक।।
तांडव विश्व को करा रहा,
रूप बदलकर सबको ये डरा रहा।
दहशत इसकी भारी है,
डरी,सहमी दुनिया आज सारी है।
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। अदृश्य शत्रु का वार भयानक।
इसकी तो है बयार भयानक।।
तांडव विश्व को करा रहा,
रूप बदलकर सबको ये डरा रहा।
दहशत इसकी भारी है,
डरी,सहमी दुनिया आज सारी है।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। अदृश्य कातिल है कब्रगाहों को सजाने को आतुर,
हे मानव! बन तू चतुर
न रख फितूर जरा भी मन में
न रह जरा भी तू वहम में।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। अदृश्य कातिल है कब्रगाहों को सजाने को आतुर,
हे मानव! बन तू चतुर
न रख फितूर जरा भी मन में
न रह जरा भी तू वहम में।
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
जिंदगी है इक नैमत्त
समझा तू इसकी कीमत,
कोरोना बना है दीमक
जिंदगी को चाट रहा, खौफ कैसा फैला है ?
कब्रगाहों में लगा जैसे कोई मेला है। घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
समझा तू इसकी कीमत,
कोरोना बना है दीमक
जिंदगी को चाट रहा, खौफ कैसा फैला है ?
कब्रगाहों में लगा जैसे कोई मेला है। घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल।
समय को देख, देख समय की धार।
घर में बैठकर ही कर सकते हैं भयानक वार।
आशा को संपूर्ण कर,
सुख को भरपूर कर
जोश नया रगों मेंं भर
रख जज्बा जीने का, मत डर, मत डर माना कि ये डगर कठिन है।
माना कि ये डगर कठिन है।
लेकिन मानव कब हारा है ?
सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान ईश्वर सबसे बड़ा सहारा है।
उम्मीद रख, रख उम्मीद
घर में बैठकर ही कर सकते हैं भयानक वार।
आशा को संपूर्ण कर,
सुख को भरपूर कर
जोश नया रगों मेंं भर
रख जज्बा जीने का, मत डर, मत डर माना कि ये डगर कठिन है।
माना कि ये डगर कठिन है।
लेकिन मानव कब हारा है ?
सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान ईश्वर सबसे बड़ा सहारा है।
उम्मीद रख, रख उम्मीद
घर में ही बस डटा रह,
किसी के संग न सटा रह।
मचल मत, मत मचल। जुडि़ए पत्रिका के ‘परिवार’ फेसबुक ग्रुप से। यहां न केवल आपकी समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि यहां फैमिली से जुड़ी कई गतिविधियांं भी देखने-सुनने को मिलेंगी। यहां अपनी रचनाएं (कहानी, कविता, लघुकथा, बोधकथा, प्रेरक प्रसंग, व्यंग्य, ब्लॉग आदि भी) शेयर कर सकेंगे। इनमें चयनित पठनीय सामग्री को अखबार में प्रकाशित किया जाएगा। तो अभी जॉइन करें ‘परिवार’ का फेसबुक ग्रुप। join और Create Post में जाकर अपनी रचनाएं और सुझाव भेजें। patrika.com
किसी के संग न सटा रह।
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