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बेमौसम बारिश से भंडारण को लेकर फिर खुली पोल

खुले में रखा जा रहा अनाज, नुकसान से बचाने के लिए नहीं हैं समुचित इंतजाम। निजी क्षेत्र पर निर्भरता पड़ रही है भारी।

Jan 14, 2022 / 11:45 pm

गोविंदराम ठाकरे

Cereal storage crisis

Cereal storage crisis

बे मौसम बरसात और ओलों की बौछार ने प्रदेश के बड़े रकबे में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा है। मौसम का मिजाज देखकर किसान अब भी सहमे हुए हैं। दूसरी ओर खरीदी केंद्रों पर खुले आसमान के नीचे पड़े टनों क्विंटल धान सहित दूसरे अनाज खराब होने के कगार पर पहुंच गए। बड़ा सवाल है कि लापरवाही के चलते हर साल करोड़ों का नुकसान होनेे के बावजूद जिम्मेदार इसे गम्भीरता से क्यों नहीं लेते? अनाज भंडारण की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की जाती? मौसम की मार से बचने के लिए खरीदी केंद्रों को शेड आदि से क्यों सुरक्षित नहीं किया जाता? यह दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर एक-दो जिलों की नहीं है। पूरे प्रदेश में अमूमन लापरवाही का यही आलम है। जबलपुर सहित सभी जिलों में भंडारण के लिए गोदामों की कमी हर साल सामने आ रही है। विकल्प के रूप में निजी क्षेत्र जरूर उभरा है, लेकिन, उस पर अधिक निर्भरता घाटे का ही सौदा साबित हो रहा है। मध्यप्रदेश वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के लगभग 40 गोदामों की क्षमता तकरीबन 70 हजार मीट्रिक टन है। ऐसे में निजी क्षेत्र के गोदामों में धान और गेहूं का भंडारण होता है। इन गोदामों को भंडारण शुल्क के रूप में हर वर्ष 60 से 70 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है। जबलपुर जिले में तो हमेशा अनाज के सुरक्षित भंडारण की कमी सामने आती है। खासकर धान को लेकर। क्योंकि, इसे केवल ढके भंडारण गृह या ओपन कैप में रखा जा सकता है। सायलो कैप में इसे रखने का प्रावधान नहीं है। गेहूं के लिए सायलो कैप उचित रहता है। आगामी सीजन के लिए भंडारगृहों की कमी है। ऐसे में दूसरे जिलों का मुंह ताकने की नौबत भी आती है। जिले में पहले ही 14 से 15 लाख मीट्रिक टन अनाज भंडारित है। हालत यह है कि जिले में जो वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के कृषि उपज मंडी, रिछाई व अन्य जगहों पर गोदाम हैं, उनका निर्माण 25 से 30 वर्ष पहले किया गया था। इनमें कुछ में तेंदूपत्ता रखा जाता था। कुछ ऐसे थे, जिनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज रखा जाता था। उस समय इतनी कम खरीदी होती थी कि ये गोदाम भी खाली रहते थे। लेकिन, वर्ष 2007 के बाद समर्थन मूल्य पर गेहूं एवं धान की खरीदी शुरू हुई, तो ये गोदाम कम पडऩे लगे। जरूरत के हिसाब से नए गोदामों के निर्माण की मांग बार-बार उठाई जाती है। सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों को इस दिशा में तत्काल कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। (गो.ठा.)

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