17 मार्च 1962 को पैदा हुई कल्पना को घर में सब
प्यार से मंटो बुलाते थे । स्कूल में एडमिशन के टाइम पर जब टीचर ने मां से बच्चे का नाम पूछा तो उन्होने कहा कि 3-4 सोचे तो हैं लेकिन अभी तक डिसाइड नहीं किया है । तब टीचर ने मंटो से पूछा कि उन्हें कौन सा नाम पसंद है और उस नन्ही बच्ची ने जवाब दिया-‘कल्पना’ क्योंकि इसका मतलब होता है सपने ।
बचपन से था सितारों से खास रिश्ता कल्पना ने 2 बार स्पेस यात्रा की लेकिन सितारों की दुनिया से उनका ये लगाव बचपन से था । बचपन में जब घर के सभी लोग छत पर सो जाते, तब कल्पना घंटो सितारों को देखा करती । इतना ही नहीं सितारों के प्रति उनके झुकाव को इस बात से भी समझा जा सकता है कि एक बार स्कूल में सभी बच्चों ने फ्लोर पर भारत का नक्शा बनाया और उस वक्त कल्पना ने क्लास रूम की सीलिंग को ब्लैक चार्ट पेपर और चमकीले डॉट्स की मदद से सितारों की तरह सजाया ।
अनजाने में की भविष्यवाणी 10th क्लास में एक बार अल्जेब्रा की क्लास में null set concept समझाते हुए टीचर ने उदाहरण दिया कि भारतीय महिला एस्ट्रोनॉट null set का परफेक्ट एग्ज़ाम्प्ल है । तब कल्पना ने आहिस्ता से कहा-‘किसे मालूम एक दिन ये null यानी खाली न रहे ।” उस वक्त पूरी क्लास में शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि कल्पना खुद स्पेस में जाने वाली पहली भारतीय महिला बनेंगी ।
इरादों की पक्की थीं कल्पना कल्पना अगर एक बार कुछ सोच लें तो वे उसे करके ही मानती थीं । 12th के बाद कॉलेज में एडमिशन के वक्त कल्पना ने इंजीनियरिंग करने की ठानी लेकिन उनके पिता ऐसा नहीं चाहते थे। आखिरकार उन्होने कल्पना की मर्जी को मान लिया । लेकिन कॉलेज में जब उन्होने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करनी चाही तो टीचर्स उन्हें ऐसा करने से मना करने लगे एक बार फिर कल्पना ने अपने दिल की सुनी और एयरोनॉटिकल कोर्स की अपने क्लास की अकेली स्टूडेंट बनी।