88 साल पहले हुई थी शुरुआत 1896 में पहले ओलंपिक खेलों का आयोजन यूनान के एथेंस में हुआ था। उस समय ओलंपिक मशाल जलाने का रिवाज नहीं था। लेकिन 1928 में नीदरलैंड्स के एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक खेलों से मशाल जलाने का विचार आया। यह फैसला लिया गया कि इस मशाल की लौ को इसी स्थान पर जलाना चाहिए, जहां से इन खेलों की शुरुआत हुई। उसके बाद से प्रत्येक ओलंपिक में मशाल की लौ यूनान के ओलंपिया में प्रज्वलित की जाती है। वहीं, 1936 में बर्लिन (जर्मनी) ओलंपिक गेम्स से ओलंपिक रिले की शुरुआत हुई। ओलंपिक लौ प्राचीन और आधुनिक खेलों के बीच एक कड़ी है। यह लौ सकारात्मक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है। किसी भी अच्छे काम से पहले अग्नि प्रज्वलित करना शुभ माना जाता है। अग्नि को शांति और दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है।
इस तरह होगी मशाल रिले 11 दिन तक ओलंपिक मशाल ग्रीस के अलग-अलग शहरों में जाएगी। इस दौरान 550 से ज्यादा लोग इस मशाल को थामेंगे। 26 अप्रेल को यह मशाल एथेंस पहुंचेगी, जहां पैनाथेनिक स्टेडियम में आयोजित समारोह में इसे पेरिस ओलंपिक की आयोजन समिति को सौंप दिया जाएगा। 08 मई को ओलंपिक मशाल मेजबान देश फ्रांस के मार्सिले शहर पहुंचेगी, जहां इसका धूमधाम से स्वागत किया जाएगा। 68 दिन की आधिकारिक यात्रा पर निकलेगी ओलंपिक मशाल और फ्रांस के करीब 65 से ज्यादा शहरों, कस्बों और गांव का भ्रमण करेगी। 26 जुलाई को मशाल वापस पेरिस आएगी, जहां ओलंपिक खेलों का उद्घाटन समारोह होगा। पूरी यात्रा के दौरान 10 हजार से ज्यादा लोग मशाल थामेंगे।