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एक समय चार गांवों की प्यास बुझाने वाला जोहड़ आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है

Johad: जोहड़ की वर्तमान में हालात अब इस कदर बदतर हैं कि ग्रामीण लोग इसके किनारे गोबर के ढेर लगा रहे हैं।

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एक समय चार गांवों की प्यास बुझाने वाला जोहड़ आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है

एक समय चार गांवों की प्यास बुझाने वाला जोहड़ आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है

-नहर बंदी में पशुधन के पीने के पानी के लिए हो सकता है वरदान साबित।

राजियासर।

एक समय चार गांवों की प्यास बुझाने वाला पुराना राजियासर स्थित जोहड़ आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है। पचास बीघा समतल व चिकनी मिट्टी से बने इस जोहड़ की वर्तमान में हालात अब इस कदर बदतर हैं कि ग्रामीण लोग इसके किनारे गोबर के ढेर लगा रहे हैं। इस जोहड़ की पचास बीघा समतल भूमि पर आग के पेड़ उग आए हैं। अपने घरों में चिकनी मिट्टी लाने वाले ग्रामीणों ने जगह-जगह गड्ढे कर दिए हैं और जोहड़ के चारों ओर रेत जमा हो गई। ग्रामीणों व पंचायत जनप्रतिनिधियों की उदासीनता व उपेक्षा तथा नियमित खुदाई व सार संभाल के अभाव में जोहङ अपना पुराना अस्तित्व खो रहा है।

अब यह एक छोटा तालाब के रूप में रह गया है। पंचायत जनप्रतिनिधियों द्वारा तथा अन्य संबंधित विभागों ने इस पुराने जोहड़ के अस्तित्व को बचाने के लिए इस ओर ध्यान नहीं दिया। जबकि सरकारों की ओर से करोड़ों रुपए खर्च करके जल संरक्षण के लिए अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं।

-यह है इस जोहड़ की खाशियत

राजियासर गांव के बुजुर्गों ने बताया कि टिब्बा क्षेत्र में शेखचूलिया, धांधूसर व राजियासर गांव के बने जोहड़ पुराने समय से ही सबसे अधिक समय तक पानी रुकने के लिए मशहूर थे। क्योंकि इन जोहङो के पास बड़े समतल मैदान व चिकनी मिट्टी थी।बुजुर्ग बताते हैं कि बारिश से यह जोहड़ पानी से भर जाने के बाद इसमें छह महीने तक पानी नहीं सूखता था। बुजुर्गों ने बताया की उस समय पानी की बेहद कमी थी। पुराने समय में लोग पानी को घी की तरह काम लेते थे। सभी ग्रामीण बारिश से पहले पूरे जोहड़ पायतन की सफाई करते थे।

इसे पुण्य का काम समझा जाता था तथा पशुओं के पानी पीने के लिए अलग घाट बना हुआ था। बुजुर्ग बताते हैं कि पास के गांव मोकलसर, पिंपासर, बछरारा व देईदास पुरा में बने जोहड़ों में पानी खत्म होने ग्रामीण भी इस जोहङ से घड़ों को ऊंटो पर लदकर पीने का पानी ले जाते थे। लेकिन नहरी पानी आने के बाद अब ग्रामीणों ने जोहड़ों की सार संभाल व सफाई करना भूल गए। लोगों ने नहरी पानी के भरोसे वर्षा के तमाम संसाधनों कुंङ, कुएं, जोहड़, बावङियों व कुंओं की अपेक्षा करनी शुरू कर दी है।

-नहर बंदी में अब भी जोहड़ वरदान

ग्रामीण बुजुर्गों ने बताया कि नहरी पानी की आने के बाद में कई बार नहरबंदी हुई है उसमें इस जोहड़ का पानी पालतू पशुधन व असहाय गोवंश के लिए वरदान साबित हुआ है । यहां पीने वाले पानी की कभी कमी नहीं रही हैं । बुजुर्गों ने बताया कि अगर इस जोहड़ में पास में चल रहे मीरचंद माइनर के खाले से इसे एक बार भर दिया जाए।

नहर बंदी में आने वाली नहर बंदी में पशुधन के लिए पीने के पानी की कोई किल्लत नहीं होगी हैं साथ ही टिब्बा क्षेत्र में रहने वाली वन्य प्राणियों के लिए भी वरदान साबित होगा। कई बार नहर बंदी में भी यह जोहड़ कई लोगों की प्यास भी बुझाता था। लेकिन ग्रामीणों ने नहरों के पानी के भरोसे वर्षा के तमाम संसाधनों कुंड, जोहड़, बावरियों और कुओं की अपेक्षा करनी शुरू कर दी है।