नक्सलियों ने फिर एक युवक को मुखबिर बता कर दी हत्या, परिजनों से कहा- रिपोर्ट कराई तो मारे जाओगे
इस वारदात के दो दिन पहले सुकमा के डब्बाकोंटा में दो युवकों कीे मुखबिर होने के शक में हत्या कर दी थी। हफ्तेभर पहले बीजापुर के बासागुड़ा में एक स्कूली छात्र को भरी जन अदालत में पुलिस का भेदिया करार देते हुए बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। और तो और छात्र के परिजनों को धमकाया की इस बात की खबर पुलिस तक नहीं पहुंचे।
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यह किस तरह की क्रांति या जनयुद्ध है ? यह तो सरासर जनसंहार है और वह भी उन लोगों का जिन्हें शोषण से उबारने का नारा देकर माओवादियों ने यहां अपनी जड़े जमाई थी। दरअसल पुलिस के बढ़ते दबाव से अपने सिमटते जनाधार और मुठभेड़ में लगातार अपने साथियों को खोने की बौखलाहट में माओवादी यहां एक बार फिर से अपना खौफ का राज कायम करना चाह रहे है। इसके लिए उन्हें किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं।
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पिछले दो माह में माओवादियों ने दर्जनभर लोगों को मौत के घाट उतारा है। इसी का नतीजा है कि अंदरूनी इलाकों में इन दिनों दहशत का माहौल है। माओवादियों ने लोगों के गांव से बाहर जाने और बाहरी लोगों के यहां आने पर पाबंदी लगा रखी है। ज्यादातर सरपंच-सचिव गायब हो चुके हैं।
सरकारी अमला भी यहां जाने से कतरा रहा है। सलवा जुडूम की काट के तौर पर भी माओवादियों ने इसी पैतरे को अपनाया था। दरअसल यह माओवादियों की सुनियोजित मनोवैज्ञानिक युद्धकला का हिस्सा है।और इस तरीके के जरिए वे एक तीर से कई निशाने साधने में कामयाब हो रहे हैं।
माओवादी खौफ के बूते अपना सूचना तंत्र विकसित करने के साथ ही पुलिस के तंत्र का सफाया करने की फिराक में हैं। वे मुखबिरों को अगवा करने के बाद अपने हथियाबंद दस्ते के साथ आसपास के गांवों में घुमाते हैं। इसके बाद भीड़ भरी जन अदालत में सजा के तौर पर उन्हें बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है। इसके बाद लाश सडक़ के किनारे फेंक दी जाती है।
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जिससे उनके खौफ के इस खेल को ज्यादा प्रचार मिल सके। शव के साथ धमकी भरा पर्चा भी छोड़ दिया जाता है कि पुलिस का साथ देने वालों का यही अंजाम होगा। बहरहाल माओवादियों की साजिश का यह नया जाल सुरक्षा बलों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। लगातार वारदातों से पुलिस के मददगारों के मनोबल पर भी असर पड़ रहा है। जिनके दम पर वे माओवादियों के खिलाफ मुहिम में कामयाबी हासिल कर रहे हैं।