scriptपुरूष प्रधान बुंदेलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में बदल रही महिलाओं की सोच, दे रही आर्थिक संबल | International Women's Day | Patrika News
टीकमगढ़

पुरूष प्रधान बुंदेलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में बदल रही महिलाओं की सोच, दे रही आर्थिक संबल

घर की दहलीज के बाहर रखा कदम, बनी परिवार का सहारा

टीकमगढ़Mar 07, 2019 / 08:35 pm

anil rawat

International Women's Day

International Women’s Day

टीकमगढ़. भले ही आज देश 21वीं सदी में प्रवेश कर वयस्क हो चुका है, लेकिन बुंदेलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में आज भी महिलाओं की सीमा घर की दहलीज के अंदर ही है। चौका, चुल्हा और बच्चों की परवरिश ही इनकी जिंदगी है। लेकिन अब लोगों के साथ ही महिलाओं की भी इस सोच में बदलाव आ रहा है। अब महिलाएं घर की चौखट से न केवल बाहर निकल रही है, बल्कि अपने परिवार का संबल भी बन रही है।
अब वह दिन फिर गए, जब महिलाओं की जिंदगी केवल घर-परिवार के अंदर तक सीमित थी। बुंदेलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में आज महिलाएं न केवल घरों से बाहर निकल रही है, बल्कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे अपने परिवार का सहारा भी बन नही है। शासन की योजनाओं से जुड़कर कुछ महिलाओं न केवल खुद को आर्थिक रूप से सक्षम किया है, बल्कि अपने पतियों की बेरोजगारी दूर करने में भी मदद की है। विश्व महिला दिवस के अवसर पर आईए जानते है टीकमगढ़ जिले की उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने समाज की पिछड़ी मानसिकता की बेडिय़ों को तोड़कर अपने परिजनों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की पहल की है।
खुद सीखा और खड़ा किया पैतृक कार्य: पलेरा विकासखण्ड के ग्राम टोरी की निवासी रानी बरार ने समाजिक बेडिय़ों को तोड़कर न केवल खुद को आर्थिक एवं व्यवसायिक रूप से मजबूत किया है, बल्कि अपने परिवार के लोगों को भी उनके पैतृक कार्य से जोड़कर आर्थिक रूप से संबल प्रदान किया है। रानी बरार का कहना है कि जब उनकी शादी हुई थी तो परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नही थी। घर-परिवार का काम करने के साथ उनके मन में हमेशा यह बात आती थी कि वह ऐसे जिंदगी बसर नही करेंगी। उनके बच्चों को वह आर्थिक आजादी के साथ अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करेगी। इसी उधेड़बुन में जब रानी को आजीविका मिशन के द्वारा चलाए जा रहे समूहों की जानकारी हुई तो उन्होंने किसी तरह से अपने पति जयराम बरार को इसके लिए राजी किया। पति के राजी होते ही, जैसे रानी के सपनों को पंख लग गए। समूह से जुडऩे के बाद फिर रानी ने पीछे मुड़कर नही देखा। समूह के माध्यम से थोड़ी-थोड़ी बचत कर जब पैसा जमा हुआ तो रानी से सबसे पहले ऋण लेकर अपने पति को दिया और अपने खेती के व्यवसाय में लगाकर उसे सुदृढ़ किया। इसके बाद दोबारा ऋण लेकर परिवार को पैतृक बांस के काम को एक बार फिर नए सिरे से खड़ा किया। इससे परिवार के अन्य सदस्य भी आय के इस श्रोत से जुट गए। परिवार के सभी सदस्यों को काम मिलने के बाद रानी ने खुद सिलाई का काम सीखा। आज रानी इसमें मास्टर है। घर पर ही वह महिलाओं एवं बच्चों के कपड़े सिलने का काम करती है। रानी का कहना है कि आज परिवार का हर सदस्य काम कर रहा है। परिवार में हर माह 10 से 12 हजार की अतिरिक्त आय हो रही है। वहीं खेती से आना बाला पैसा पूरा बच रहा है। उनके पति जयराम बरार कहते है कि यदि उन्होंने रानी की बात न मानी होती तो शायद आज भी वह थोड़ी सी जमीन से परिवार पालने की जद्दोजहद कर रहे होते। 12 तक शिक्षित रानी की कार्यकुशलता देखकर समूह के सदस्यों ने न केवल उसे अपना अध्यक्ष चुना है, बल्कि कम्प्यूटर सीख लेने के कारण वह टेबलेट पर आजीविका मिशन की पंजी का भी संधारण करती है।

पति को भी दिलाया रोजगार, खुद चला रही दुकान: ऐसी ही कुछ कहानी है जतारा विकासखण्ड के ग्राम बराना निवासी सबाना बानो की। शादी के बाद तीन बच्चें होने एवं पति अकबर के पास कोई आय का जरिया न होने से सबाना परेशान रहती थी। परिवार चलाने एवं बच्चों की परवरिश की चिंता में परेशान हो रही सबाना का सहारा भी आजीविका मिशन मिला। आर्थिक तंगी से परेशान सबाना ने खुद महिलाओं को जोड़कर समूह बनाया और तंगी के बाद जैसे-तैसे बचत कर समूह को खड़ा किया। समूह में पैसा आने पर सबाना ने 30 हजार रूपए का ऋण लेकर मनहारी की दुकान खोल ली। कहते है जहां चाह, वहां राह, सबाना की यह दुकान चल निकली तो उसने यह ऋण चुकता कर दूसरा ऋण लिया और अपने पति को भी कपड़े का काम करने के लिए तैयार किया। आज सबाना जहां गांव में मनहारी की दुकान और कपड़े सिलने का काम करती है, वहीं उनके पति अकबर साईकिल से बच्चों के कपड़े लेकर आसपास के गांव में जाकर उसे बेचते है। अब परिवार में किसी प्रकार की आर्थिक परेशानी नही है। दोनो मिलकर 12 से 15 हजार रूपए महिने की आय कमा रहे है। इन महिलाओं की दृढ़ इच्छा शक्ति और अपने परिवार का संबल बनने की हर कोई तारीफ कर रहा है। आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक अपर्णा सौनकिया का कहना है कि बुंदेखलण्ड की महिलाओं में काम करने का जबरदस्त जज्बा है। मिशन से जुड़कर सबाना और रानी आज महिलाओं के लिए प्रेरणा श्रोत के रूप में काम कर रही है। वहीं जिला प्रबंधक सौरभ खरे का कहना है कि मिशन से जुड़कर आगे बड़ रही महिलाएं यहां के लोगों की मानसिकता में खासा बदलाव ला रही है। आज ग्रामीण क्षेत्रों की अनेक महिलाएं अब घरों से बाहर निकल कर अपने परिवार का सहारा बन रही है।

Home / Tikamgarh / पुरूष प्रधान बुंदेलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में बदल रही महिलाओं की सोच, दे रही आर्थिक संबल

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो