● मम्प्स के लक्षण संक्रमण के 12 से 24 दिन बाद दिखने लगते हैं। ज्यादातर बच्चों में ठंड लगना, सिरदर्द होना, भूख कम लगना, बीमारी का सामान्य अहसास और मध्यम तापमान का बुखार होता है।
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– 22 मम्प्स रोगी की पहचान की गई
– 12 बच्चे 9 वर्ष आयु तक के ग्रसित
– 1 बालक 10 से 19 वर्ष के बीच
– 9 मम्प्स रोगी 20 वर्ष से अधिक उम्र के
प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों से मम्प्स वायरस और उसके एंटीबॉडीज की पहचान की जा सकती है। इस तरह के टेस्ट का इस्तेमाल डायग्नोसिस की पुष्टि करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोजनों के लिए किया जाता है। मेनिनजाइटिस या एन्सेफ़ेलाइटिस के लक्षण वाले लोगों के लिए स्पाइनल टैप किया जाता है।
मम्प्स के लिए, अब कोई अलग टीका नहीं होता है। खसरा-मम्स-रूबेला टीका एक कॉमन टीका होता है, जिसमें कमज़ोर खसरा, मम्स, और रूबेला के वायरस होते हैं। यह बचपन के नियमित टीकाकरण में से एक है। एमएमआर वैक्सीन और चिकनपॉक्स की वैक्सीन एक संयुक्त वैक्सीन के रूप में भी उपलब्ध है। पहली खुराक 12 से 15 महीने की उम्र के बीच दी जाती है।
एमबी हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. आरएल सुमन ने बताया, मम्प्स रोगी प्रतिदिन आ रहे हैं, लेकिन घबराने की जरुरत नहीं है। 95 प्रतिशत रोगी एक बार उपचार लेकर ही ठीक हो रहे हैं। कुछ केस में परेशानी आती है, जिनमें भविष्य में परेशानी बढ़ने की आशंका रहती है। लक्षण दिखाई देने पर नजदीकी चिकित्सालय में डॉक्टर से परामर्श लें। मास्क लगाए रखें, वायरस फैलाने से बचना चाहिए।
सीएमएचओ डॉ. शंकर एच. बामनिया मम्प्स एक वायरस है। निदान लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इलाज का उद्देश्य लक्षणों से राहत देना होता है। ज्यादातर बच्चे बिना किसी समस्या के ठीक हो जाते हैं, लेकिन संक्रमण से मेनिनजाइटिस या एन्सेफेलाइटिस हो सकता है। मम्प्स का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। बेचैनी कम करने के लिए नरम आहार देना चाहिए।
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