चितराम में राज प्रासादों की दीवारों, दरवाजों और गोखड़ों को अलंकृत करने के लिए कलाकार बेल-बूटे और हाथी-घोड़े-दरबान आदि उकेरा करते थे। आज भी कई लोग वैवाहिक, मांगलिक और धार्मिक अवसरों पर अपने घरों तथा मंदिरों की दीवारों पर चितराम बनवाते हैं। ये अलग बात है कि राजभवनों से निकली इस कला ने गली-कंूचों से गुजरते होटल और रिसोर्ट तक पहुंचकर हेरिटेज आर्ट का रूप अख्तियार कर लिया।
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चित्रकार कन्हैयालाल सोनी बताते हैं ‘पिता सोने-चांदी का पुश्तैनी काम करते थे। लेकिन मैं इस कला से पिछले 37 साल से जुड़ा हंू। कई साल पहले अधिकांश शादी-ब्याह का मंडप घरों में सजता था। जाहिर सी बात है खुशी के उस मौके पर परिजन लिपाई-पुताई और रंगाई के बाद बड़े शौक से चितराम बनवाया करते थे। अब चंूकि शादियां ज्यादातर वाटिकाओं और होटलों में हुआ करती है तो बमुश्किल कभी-कभार कोई काम मिलता है। एेसे में परिवार पालने के लिए हाथी-घोड़ों के अलावा राजा-महाराजाओं के पोट्र्रेट, प्योर गोल्ड प्लेटेड मुगल पेंटिंग्स व पिछवाइयां बनाने, मंदिरों तथा होटल-रिसोर्ट में डेकोरेटिव वॉल पेंटिंग तथा रिस्टोरेशन वर्क भी किया करता हंू।Ó
चित्रकार कन्हैयालाल सोनी बताते हैं ‘पिता सोने-चांदी का पुश्तैनी काम करते थे। लेकिन मैं इस कला से पिछले 37 साल से जुड़ा हंू। कई साल पहले अधिकांश शादी-ब्याह का मंडप घरों में सजता था। जाहिर सी बात है खुशी के उस मौके पर परिजन लिपाई-पुताई और रंगाई के बाद बड़े शौक से चितराम बनवाया करते थे। अब चंूकि शादियां ज्यादातर वाटिकाओं और होटलों में हुआ करती है तो बमुश्किल कभी-कभार कोई काम मिलता है। एेसे में परिवार पालने के लिए हाथी-घोड़ों के अलावा राजा-महाराजाओं के पोट्र्रेट, प्योर गोल्ड प्लेटेड मुगल पेंटिंग्स व पिछवाइयां बनाने, मंदिरों तथा होटल-रिसोर्ट में डेकोरेटिव वॉल पेंटिंग तथा रिस्टोरेशन वर्क भी किया करता हंू।Ó