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कहीं खो गई है उदयपुर की ये अनूठी कला, कलाकार भी बचे हैं गिनती के

परम्परागत मेवाड़ी भित्ति चित्रण कला पर गहराता संकट…

उदयपुरAug 08, 2017 / 05:04 pm

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उदयपुर . किसी खास वजह से हर शहर की अपनी अलग पहचान बन जाती है। जिनमें खाने-पीने से लेकर पहनावे, रहन-सहन, बोलचाल, बसावट, लोक संस्कृति और कलाएं, प्राकृतिक स्वरूप जैसे कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं। वैसे तो यह शहर आज अपनी झीलों, पर्यटन और कुदरती सौंदर्य के दम पर विश्व में अलग पहचान रखता है। लेकिन, एक समय में इसकी पहचान लकड़ी के खिलौने और मेवाड़ी परम्परागत भित्ति चित्रण (चितराम) से भी हुआ करती थी।
चितराम में राज प्रासादों की दीवारों, दरवाजों और गोखड़ों को अलंकृत करने के लिए कलाकार बेल-बूटे और हाथी-घोड़े-दरबान आदि उकेरा करते थे। आज भी कई लोग वैवाहिक, मांगलिक और धार्मिक अवसरों पर अपने घरों तथा मंदिरों की दीवारों पर चितराम बनवाते हैं। ये अलग बात है कि राजभवनों से निकली इस कला ने गली-कंूचों से गुजरते होटल और रिसोर्ट तक पहुंचकर हेरिटेज आर्ट का रूप अख्तियार कर लिया।
हालांकि, अब इस कला को जीवित रखने के लिए इस शहर में लोकेश नारायणशर्मा, विष्णुशंकर कुमावत, मोहनलाल कुमावत, अमृतलाल लोहार, बालमुकुंद उपाध्याय, घनश्याम भारती गोस्वामी, ललित शर्मा, कन्हैयालाल सोनी जैसे गिने-चुने कलाकार रह गए हैं। इनसे पूछने करने पर इस बात की पुष्टि तो हो जाती है कि अब ये सभी कलाकार केवल भित्ति अलंकरण या चितराम पर ही आश्रित रहकर जीवन-बसर नहीं कर रहे, वरन् लघु चित्रण शैली में पिछवाइयां, मुगल पेंटिंग्स के साथ प्रयोगात्मक मॉर्डन आर्ट और ओल्ड पेंटिंग रिस्टोरेशन के काम भी कर रहे हैं।
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चित्रकार कन्हैयालाल सोनी बताते हैं ‘पिता सोने-चांदी का पुश्तैनी काम करते थे। लेकिन मैं इस कला से पिछले 37 साल से जुड़ा हंू। कई साल पहले अधिकांश शादी-ब्याह का मंडप घरों में सजता था। जाहिर सी बात है खुशी के उस मौके पर परिजन लिपाई-पुताई और रंगाई के बाद बड़े शौक से चितराम बनवाया करते थे। अब चंूकि शादियां ज्यादातर वाटिकाओं और होटलों में हुआ करती है तो बमुश्किल कभी-कभार कोई काम मिलता है। एेसे में परिवार पालने के लिए हाथी-घोड़ों के अलावा राजा-महाराजाओं के पोट्र्रेट, प्योर गोल्ड प्लेटेड मुगल पेंटिंग्स व पिछवाइयां बनाने, मंदिरों तथा होटल-रिसोर्ट में डेकोरेटिव वॉल पेंटिंग तथा रिस्टोरेशन वर्क भी किया करता हंू।Ó

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