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वाराणसी

गणेश उत्सव- जानें बनारस में कब शुरू हुआ गणेशोत्सव कौन था सूत्रधार

– गणेश उत्सव-लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी शुरूआत-काशी के ब्रह्मा घाट किनारे हुआ था पहला गणेशोत्सव- पिछले दो दशक में मिली भव्यता

वाराणसीSep 03, 2019 / 04:11 pm

Ajay Chaturvedi

जय श्री गणेश

जय श्री गणेश

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. सर्व सामान्य को उत्सव के माध्यम से एक सूत्र में पिरोने का भाव लेकर बाल गंगाधर तिलक ने स्वांत्र्य आंदोलन के दौर में जब रैलियां निकालने, सभाएं करने पर ब्रिटिश हुकूमत ने रोक लगा दी तो गणेशोत्सव के रूप में आंदोलन को गति दी। ऐसे में जब पूरा देश आजादी के लिए व्याकुल रहा, भला काशी कैसे उससे अछूता रह सकता था। लिहाज महाराष्ट्र के पुणे में शुरू हुई परंपरा बनारस तक पहुंची और 1896 में पहली बार धर्म नगरी काशी में गंगा किनारे, ब्रह्मा घाट क्षेत्र स्थित सरदार आंद्रे का बाड़ा में पहली बार गणेश उत्सव मनाया गया।

गणेश उत्सवों से शिद्दत से जुड़े डॉ उपेंद्र विनाक शहस्त्रबुद्धे ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि तिलक जी की प्रेरणा से काशी गणेश उत्सव समिति का गठन हुआ। सिंधिया राजघराने सहित अन्य राजघरानों का भी सहयोग मिला और वाराणसी में गणेशोत्सव की परंपरा का श्री गणेश हुआ। उन्होंने बताया कि इसके बाद 1908 में फंडवीस का बाड़ा में नूतन बालक गणेश उत्सव का आगाज हुआ। इसके पश्चात आंध्र तारक आश्रम, हनुमान घाट, शारदा भवन गणेश उत्सव गणेश महाल फिर 1008 में लोकमान्य सार्वजनिक श्री गणेश उत्सव, काशी विश्वनाथ गणपति महोत्सव, मछोदरी, अगस्त्य कुंड स्थित राममंदिर में गणेश उत्सव की परंपरा शुरू हुई।
उन्होंने बताया कि तिलक जी की प्रेरणा और उनके उद्देश्यों के अनुसार ही इस उत्सव का श्री गणेश हुआ लेकिन तब इसका वो प्रचार-प्रसार नहीं हो सका जिससे इस उत्सव का जो प्रभाव दिखना चाहिए वह दिखा नहीं। लोग जुड़े तो पर व्यापकता नहीं मिल सकी। हर साल भादो शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी पर उत्सव मनाया जाता रहा। दरअसल एक बात ये भी रही कि यह उत्सव महाराष्ट्र के लोग ही मनाते रहे, जिससे पूरी तरह से यह महाराष्ट्र की परंपरा से ही जुडा रहा। कोई ताम-झाम नही था। आम पूजनोत्सव की तरह गणेश उत्सव कभी भी सार्वजनिक स्थान यथा रास्ते या गलियों मे नहीं मनाया गया।
बाल गंगाधर तिलक
लेकिन 1990 के उत्तरार्ध में धीरे-धीरे इसका प्रचार-प्रसार बढना शुरू हुआ। उद्देश्य के तहत लोग जुडने लगे। इस उत्सव से स्कूलों को जोड़ा जाने लगा तब इसे और व्यापकता मिली। अब हर साल करीब सौ से डेढ सौ स्कूल इससे जुड़ गए हैं। बच्चों की तरह-तरह की प्रतियोगिताएं होने लगी हैं। उन प्रतियोगिताओ में बच्चों की सहभागिता और उनके पुरस्कृत होने पर अभिभावक भी जुड़ने लगे हैं।
डॉ शहस्त्रबुद्धे ने बताया कि केवल उनकी संस्था लोकमान्य सार्वजनिक श्री गणेश उत्सव इस साल 21वीं वर्षगांठ मना रही है। संस्था द्वारा पहले टाउनहॉल में वर्षों तक गणेशोत्सव की परंपरा निभाई गई, अब पहले दिन यानी चतुर्थी को घासी टोला स्थित संस्था के कार्यालय में पूजन व अन्य कार्यक्रम होते हैं। इसके बाद अलग-अलग स्थान पर यह उत्सव मनाया जाता है। स्कूली बच्चों की प्रतियोगिता, सामाजिक कार्यों से जुड़े, शिक्षक आदि का सम्मान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बताया कि करीब 15 साल पहले पुरस्कार के तौर पर लोगों को पौधा वितरित करने की परंपरा शुरू की गई। आज भी वह परंपरा जीवित है और सबसे अच्छी बात कि बच्चे उससे जुड़े हैं।

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