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वाराणसी

सियासी मुद्दा बनने के बाद भी वरुणा को नहीं मिली संजीवनी

जल को तरसती रही नदी और वरुणा कॉरीडोर के नाम पर बहता रहा पैसा, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बन जाने के बाद भी गिर रहा गंदे पानी का नाला

वाराणसीApr 13, 2019 / 06:48 pm

Devesh Singh

Varuna River

Varuna River

वाराणसी. गंगा की अवरिलता व निर्मलता को लेकर सत्ता पक्ष व विपक्ष अपने-अपने दावे करता आया है। बीजेपी सरकार कहती है कि उसकी सरकार में गंगा साफ हुई है जबकि विपक्ष ने सत्ता पक्ष के दावे को हमेशा ही नकारा है। गंगा के मुद्दे को लेकर आज भी राजनीतिक दलों में लड़ाई जारी है लेकिन इस शोर के बीच जीवनदायनी एक और नदी की करूण आवाज दब कर रह गयी है। सियासी मुद्दा बनने के बाद भी वरूणा नदी को संजीवनी नहीं मिल पायी। पानी बिना नदी एक नाला बन चुकी है लेकिन वरूणा कॉरीडोर के नाम पर सरकार का पैसा बहाना जारी है।
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पीएम नरेन्द्र मोदी के नमामि गंगे प्रोजेक्ट का जवाब देने के लिए प्रदेश के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने मार्च 2019 में वरूणा कॉरीडोर प्रोजेक्ट की नींव रखी थी। पीएम नरेन्द्र मोदी के नमामि गंगे प्रोजेक्ट का जवाब देने के लिए ही आनन-फानने में योजना को जमीन पर उतारना शुरू किया था। 201 करोड़ के प्रोजेक्ट के तहत कैंट से आदिकेशव घाट (सराय मोहना) तब लगभग 10 किलोमीटर तक वरूणा नदी के दोनों तरफ पाथ वे, हरियाली, लाइटिंग, जल संरक्षण के लिए चैक डेम, नौका विहार की सुविधा, फूड प्लाजा व पार्क आदि का विकास करना था। साल भर में यूपी विधानसभा चुनाव 2017 तक वरूणा कॉरीडोर प्रोजेक्ट सियासी मुद्दा बना रहा। चुनाव से पहले ही आयी बाढ़ में ही कॉरीडोर डूब गया। इसके बाद सपा को घेरने के लिए विरोधी दलों को बड़ा अस्त्र मिल गया। यूपी चुनाव में सपा को मिली करारी शिकस्त के बाद से वरूणा कॉरीडोर सभी दलों के एजेंडे से गायब हो गया। इसके बाद वरूणा कॉरीडोर को लेकर आधा दर्जन से अधिक अधिकार सस्पेंड हो चुके हैं इसके बाद भी काम पूरा तरह जमीन पर नहीं उतर पाया है।
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70 प्रतिशत हो गया था भगुतान, 50 प्रतिशत नहीं हुआ काम
वरूण कॉरीडोर में जमकर खेल हुआ है इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। वरूणा कॉरीडोर का 50 प्रतिशत ही काम हुआ था लेकिन शासन ने कुल बजट का 70 प्रतिशत भुगतान कर दिया था। सवाल उठे तो नीद खुली और कार्रदायी संस्था पर शिकंजा कसा तो काम में तेजी आयी। इसके बाद जब सरकार ने कॉरीडोर से अपना ध्यान हटाया या कहे कि पुरानी व्यवस्था के तहत ही नये मंत्री चलने लगे तो काम की रफ्तार फिर मंद पड़ गयी।
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पीएम नरेन्द्र मोदी ने किया था एसटीपी का उद्घाटन, आज भी गिर रहा वरूणा में नाला
एसटीपी में शोधन होगा वाराणसी वरूणा नदी में गिर रहा नाला
पीएम नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2019 में गोइठंहा व दीनापुर एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) का उद्घाटन किया था। वरूणा नदी में गिर रहे बड़े नालो को इन एसटीपी में जोडऩे की योजना है। चौकाघाट के पास सीवर को पानी को लिफ्ट करने के लिए एक छोटा स्टेशन भी बनाया है, जहां से पानी लिफ्ट करके एसटीपी तक पहुंचाना होगा। सीवर लाइन का रेल लाइन पार करनी है जिसकी अनुमति अभी तक नहीं मिली है इसके चलते आज भी वरूणा में गिर रही सीवर के पानी से वहां पर मलजल बह रहा है।
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पूरा हो गया है प्रोजेक्ट, अतिरिक्त कार्य किया जा रहा है
वरूणा कॉरीडोर बनाने वाले कार्रदार्य संस्था अधीक्षण अभियंता आलोक जैन का कहना है कि वरूणा कॉरीडोर का जो शुरूआती प्रोजेक्ट बना था वह पूरा हो गया है। अतिरिक्त कार्य जो बढ़े थे उसे पूरा कराया जा रहा है।
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अब एनजीटी ने जगायी है आस, चुनाव के बाद नहीं हुआ काम तो होगी कार्रवाई
राजनीतिक दलों ने वरूणा का अपने हिसाब से उपयोग कर उसे छोड़ दिया है। इसके बाद से तिल-जिल कर दम तोड़ रही वरूणा के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल (एनजीटी) बड़ी आस बन कर उभरी है। एनजीटी के पूर्वी यूपी के चेयरमैन जस्टिस डीपी सिंह ने कई बार वरूणा नदी का स्थलीय निरीक्षण किया है और देखा कि स्लाटर हाउस का खून तक वरूणा में गिराया जा रहा है। वरूणा के किनारे हरियाली नहीं है। कूड़े से वरूणा को पाटा जा रहा है। जस्टिस डीपी सिंह की चेतावनी के बाद भी वरूणा के किनारे से कूड़ा नहीं हटाया गया था इस उन्होंने अधिकारियों को मई तक का समय दिया है जिसमे वरूणा नदी पर किये गये अतिक्रमण की सारी जानकारी देनी होगी। इसके बाद जुलाई तक वरूणा के किनारे एक लाख से अधिक पौधे लगाने को कहा है। एनजीटी का आदेश नहीं मानने पर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई का चाबुक भी चला सकता है।
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