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जबलपुर

25 साल के दो नौजवान, जिन्हें मां का बस नाम याद है… सूरत नहीं, द्रवित कर देगा ये VIDEO

माता-पिता की तलाश में भटकर रहे बचपन में बिछड़े दो युवक

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जबलपुर। एक को केवल इतना याद है कि मम्मी का चेहरा गोल और रंग गेहुंआ था। वह हंसमुख थीं। दूसरे को तो यह भी याद नहीं कि मम्मी-पापा आखिर दिखते कैसे थे..? यह दासतां है पुणे से आए 25 वर्षीय राजू मुन्ना सुरीन और उसके दोस्त रोहित की..। वे माता-पिता की तलाश में जबलपुर आए हैं। दोनों बचपन में ही अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे। जिन्दगी के प्रवाह ने दर-दर भटकाते हुए उन्हें पुणे तक पहुंचा दिया। दोनों वहीं रहकर जॉब कर रहे हैं। दोनों के मन में बस एक ही ललक है कि मम्मी-पापा की एक झलक मिल जाए।

केवल इतना याद है…
राजू की दासतां किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। उसके अनुसार उसे केवल इतना याद है कि जब वह करीब 9 साल का था तब पापा ने डांटा था। इस बात से नाराज होकर वह नाराज होकर वह रेलवे स्टेशन पहुंच गया था। संभवत: वह यहां किसी ट्रेन में बैठ गया और खुद को पुणे में पाया। उम्र के हिसाब से उसका अनुमान है माता-पिता से बिछडऩे की वह घटना सन् 1999-2000 की रही होगी।

स्टेशन पर मांगी भिक्षा
राजू ने बताया कि पुणे पहुंचने के बाद वह कई दिन तक रेलवे स्टेशन पर ही हम उम्र बच्चों के साथ रहा। भिक्षा मांगी और फिर एक दिन पुणे की समाजसेवी संस्था सर्व सेवा संघ के पदाधिकारी उसे अपने साथ ले गए। आश्रम में रखकर पढ़ाई शुरू कराई, लेकिन कुछ समय बाद ही वह संस्था से भाग निकला था। इसके बाद अन्य संस्थाओं की मदद से उसने शिक्षा पूरी की और नर्सिंग का कोर्स पूरा करने के बाद अब वह पुणे में ही जॉब कर रहा है।

बताते हुए नम हुईं आंखें
माता-पिता की एक झलक पाने को बेताब राजू ने बताया कि उसे केवल इतना याद है कि मम्मी का चेहरा गोल और रंग गेहुंआ था। पापा कुछ सांवले थे। मम्मी का नाम सुषमा और पापा का नाम मुन्ना था। जाति नहीं मालूम। वह उस दिन पर पश्चाताप कर रहा है, जब उसने छोटी सी डांट पर घर छोड़ दिया था। दासतां सुनाते वक्त उसकी आंखें नम हो गईं। राजू ने बताया कि जब वह घर से गया था तो उसका करीब 6 माह का एक छोटा भाई भी था।

इसे तो चेहरा भी याद नहीं
राजू के साथ आए उसके दोस्त रोहित संदीप ठाकुर को तो यह नाम भी पुणे की संस्था के लोगों ने दिया है। रोहित ने बताया कि जब वह साढ़े 4 साल का था तब परिवार के लोगों से बिछड़ गया और पता नहीं कैसे ट्रेन में बैठकर पुणे पहुंच गया। रोहित ने कहा कि मुझे मम्मी-पापा की शक्ल-सूरत और कुछ भी याद नहीं है। स्पॉट देखकर लगता है कि मेरे परिवार के लोग इटारसी के आसपास के रहे होंगे। वहां जाकर खोजबीन भी की, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। फिलहाल वह अपने दोस्त राजू के परिवार जनों की खोजने के लिए उसके साथ जबलपुर आया है।

घूम-घूमकर देखी गलियां
राजू अपने दोस्त रोहित के साथ शुक्रवार को सुबह जबलपुर पहुंचा। उसे जाना कहां है…? अन्य ऑटो चालकों की तरह यही सवाल ऑटो चालक राम प्रयाग पटेल का भी रहा। जवाब में राजू ने बताया कि वह बचपन में बिछड़ गया था। उसको केवल यह याद है कि उसके घर के रास्ते पर एक पुल था। रात में घर से स्टेशन तक आने में करीब दो घंटे लग गए थे। कुछ गलियों को वह जानता है। इस आधार पर ऑटो चालक रामप्रयाग ने उन्हें शहर में कई जगह घुमाया लेकिन घर का पता नहीं मिल पाया। अंत में ऑटो चालक ने राजू को एसपी ऑफिस पहुंचाया है। राजू के पास बचपन के फोटो भी हैं, जो पुणे की संस्था ने उसके मिलने व एडमिशन आदि के दौरान खिंचवाए थे। उसे उम्मीद है कि फोटो और गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस जरूर उसके माता-पिता का पता लगा सकती है।