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जनता को नहीं मिल रहा है स्वच्छ पेयजल

अस्वच्छ पेयजल जल से देश में हर वर्ष होती हैं लाखों मौतें

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Sunil Sharma

Dec 19, 2017

drinking water

drinking water

- प्रीति चौधरी

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक राष्ट्रीय स्वच्छता कवरेज सिर्फ़ शहरी इलाकों में क़रीब 46 फ़ीसद तो यह ग्रामीण इलाकों में 30 फ़ीसद के आसपास ही है। जो जल प्रदूषण का वाहक बन रहा है। ज़हरीले पदार्थों का उपयोग, खेतों में अनियंत्रित मात्रा में हो रही रासायनिक खादों का उपयोग भी भू-जल को दूषित कर रहें हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पीने योग्य पानी स्वच्छ, गंधयुक्त और स्वादयुक्त होना चाहिए।

एक रिपोर्ट के मुताबिक देश 2016 में पानी की गुणवत्ता के मामले में विश्व के 122 देशों में से भारत 120वें स्थान था। जबकि पानी की उपलब्धता के मामले में 180 देशों में हमारे देश का नम्बर 133 वा आता है। फ़िर जब लोगों को साफ़ पानी क्या सिर्फ़ पीने के लिए पानी भी उपलब्ध कराने में विश्व के सैकड़ों देशों से पीछे हैं। आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी देश को स्वच्छ पानी उपलब्धता नही हुआ।

यह देश की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर सवाल ख़ड़े करती है कि क्या कारण है कि आज़ादी के सत्तर बसंत बाद भी महज़ 18 फीसदी ग्रामीण आबादी को साफ और स्वच्छ पानी उपलब्ध हो पा रहा है। वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 14 करोड़ घरों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिलता। तो शायद यह उनके जीवन जीने के अधिकार के साथ सीलबंद बोतलों की आदी सरकारी व्यवस्था खिलवाड़ कर रही है।

जिस हिसाब से राज्यों में साफ़ पानी की पहुंच में विषमता दिखती है, वह राज्य के मठाधीशों की नीतियों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। आंध्र प्रदेश की जहां 36 फीसदी ग्रामीण आबादी को साफ पानी मिलता है, वहीं बिहार के सिर्फ़ और सिर्फ़ दो फ़ीसद ग्रामीण लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध हो पाता है। फ़िर चुनावों में सामाजिक सरोकार का पैरोकार राजनीतिक पार्टियों को बनना चाहिए, न कि स्वार्थ की राजनीतिक रोटियां सेंकने का आदी होना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक देश में हर साल लगभग चार करोड़ लोग पीने के पानी से होने वाली बीमारियों की चपेट में आते हैं। देश में 7.80 लाख मौतों के पीछे का कारण प्रदूषित जल होता है। यह साबित करता है, संविधान जीवन जीने का अधिकार देती है, लेकिन व्यवस्था शायद उस अधिकार से खेल रचती है।

देश में चार लाख मौतें सिर्फ़ डायरिया से होती है। देशभर के करीब 66,700 इलाकों में पेयजल पीने लायक नहीं है, अगर यह तथ्य इसी वर्ष तात्कालिक पेयजल और स्वच्छता मंत्री राज्यसभा में स्वीकार करते हैं, तो क्या इस दिशा में सरकारी नीतियों का ध्यान जाएगा, कि लोगों को आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त पानी पीने से बचाया जा सके।

आंकड़ों पर गौर करें, तो पीने के पानी में 2100 प्रकार के जहरीले तत्व मौजूद होते हैं। तो ऐसे में क्या यह सरकार की जिम्मेवारी नहीं कि वह अपने लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराए। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के भीतर हर आठ सेकेंड में एक बच्चा पानी से जुड़ीं बीमारियों से कालकलवित हो जाता है।

इसके साथ हर साल 50 लाख से अधिक लोग असुरक्षित पीने के पानी, अशुद्ध घरेलू वातावरण और मलमूत्र का अनुचित ढंग से निपटान करने से जुड़ी बीमारियों से मर जाते हैं। तो जाति-धर्म की बेजा बहस को तिलांजलि देकर पहले राजनीतिक धर्म देश की आवाम की नैसर्गिक जरुरतों पर होना चाहिए। सरकार को पहले सबको स्वच्छ पानी, पेट भरने के लिए खाना और रहने के लिए घर उपलब्ध कराने पर जोर हो, तभी जनतंत्र मजबूत होगा।