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Environment: प्रकृति में इंसानों का दखल बढ़ा रहा संक्रामक बीमारियां, इस तरह हो सकता है काबू

शोध के अनुसार इंसानी दखल से जैसे ही मनुष्य जैव विविधता को नष्ट करता है, दुर्लभ प्रजातियां सबसे पहले गायब हो जाती हैं और संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

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Human interference in nature is increasing infectious diseases

Human interference in nature is increasing infectious diseases

Environment: पर्यावरण में मानवीय गतिविधियों के दखल से संक्रामक रोग फैलने का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। जैव विविधता की हानि, गैर-देशी प्रजातियों का आना, जलवायु परिवर्तन और रासायनिक प्रदूषण न केवल मनुष्यों में बल्कि पौधों और जानवरों में भी बीमारी फैलने के प्रमुख चालक हैं। अमरीका के शोधकर्ताओं के नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध से यह खुलासा हुआ है। स्टडी के अनुसार जैव स्थानीय या विश्वव्यापी स्तर पर पौधों या जानवरों की प्रजातियों के नुकसान यानी जैव विविधता हानि का सबसे बड़ा प्रभाव पड़ता है।

इस तरह होती हैं संक्रामक बीमारियां

माना जाता है कि जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र तनुकरण प्रभाव नामक एक घटना के माध्यम से संक्रामक रोगों के प्रसार को सीमित करते हैं। शोध के अनुसार इंसानी दखल से जैसे ही मनुष्य जैव विविधता को नष्ट करता है, दुर्लभ प्रजातियां सबसे पहले गायब हो जाती हैं और संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन व रासायनिक प्रदूषण जैसे वैश्विक परिवर्तन भी कई तरीकों से संक्रामक रोग बढ़ाते हैं।

गैर-देशी प्रजातियां लाती हैं रोगजनक

जब गैर-देशी प्रजातियों को पर्यावरण में लाया जाता है, तो वे अपने साथ नए रोगजनकों और परजीवियों को लाते हैं, जिससे नई बीमारियों का प्रकोप हो सकता है। ऐसा ही हुआ जब एशियन टाइगर मच्छर एशिया से यूरोप पहुंचा और अपने साथ डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ लेकर आया। जलवायु परिवर्तन प्रजातियों के प्रवासी पैटर्न को बदल सकता है, जिससे उन्हें नए क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जहां वे स्थानीय प्रजातियों के संपर्क में आ सकते हैं और रोगजनकों की अदला-बदली कर सकते हैं