पाकिस्तान पूर्व राष्ट्रपति व पूर्व आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ का आज निधन हो गया है। ये वही मुशर्रफ हैं जो कश्मीर समाधान के तो सबसे करीब आए, लेकिन कारगिल युद्ध की शुरुआत भी की।
जनरल परवेज मुशर्रफ ऐसे पूर्व आर्मी चीफ हैं जो शायद भारत के साथ कश्मीर मुद्दे को हल करने के करीब आए, लेकिन सीमा पार घुसपैठ के पीछे मुख्य भूमिका में भी थे, जिसने कारगिल संघर्ष को गति दी। रविवार यानी आज लंबी बीमारी के बाद 79 साल के उम्र उनका निधन हो गया है। न्यूज टीवी चैनलों में उग्र और सख्त बात करने वाले मुशर्रफ 1999 में तख्तापलट के माध्यम से पाकिस्तान की सत्ता में आए। उन्होंने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली नागरिक सरकार का तख्तापलट हटा दिया और पाकिस्तान के तानाशाह बन गए. उनके सत्ता संभालते ही नवाज शरीफ को परिवार समेत पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था।
मुशर्रफ भारत के साथ एक तरफ दोस्ती का दिखावा करते थे और दूसरी तरफ वह भारत सरकार की पीठ पर छुरा घोंपने का काम करते थे। धोखेबाजी का पहला शिकार मुशर्रफ ने उन पर मेहरबान रहने वाले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को ही बनाया था।
नवाज शरीफ ने ही मुशर्रफ को बनाया था आर्मी चीफ
साल 1998 में पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ पर भरोषा करते हुए उन्हें पाकिस्तानी आर्मी के प्रमुख की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन जल्द ही परवेज मुशर्रफ की नियति खराब हो गई और लगभग एक साल बाद ही तख्तापलट कर दिया था।
तख्तापलट के बाद की थी कारगिल युद्ध की शुरुआत
तख्तापलट से पहले तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के निमंत्रण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर का दौरा किया था, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश की गई थी। लेकिन इसके कुछ हफ्तों बाद तख्तापलट हुआ और पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा (LOC) के पास गुप्त रूप से घुसपैठ करने की कोशिश की, जो आगे चलकर कारगिल युद्ध में बदल गया। कारगिल युद्ध पाकिस्तान के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ और भारतीय सैनियों के हाथों हताहत होने के बाद पाकिस्तान को अपने सैनिकों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कश्मीर समाधान के करीब आए थे मुशर्रफ
कारगिल युद्ध के ठीक दो साल बाद मुशर्रफ ने जुलाई 2001 में आगरा के ताजमहल शहर में एक शिखर सम्मेलन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। बैठक से बड़ी उम्मीदों के बावजूद बाद वार्ता विफल हो गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा नेताओं में मुशर्रफ के बारे में संदेह ने भी इसमें भूमिका निभाई है। इसके बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों की सरकारों ने संपर्क किया। जिसके परिणामस्वरूप कश्मीर मुद्दे को सुलझाने को लेकर पहल हुई,लेकिन यह पहल कभी पूरी नहीं हो सकी।