कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान पहले तालिबान शासन का समर्थन करता था और अब भी अफगानिस्तान की गनी सरकार के विरोधी तालिबान का पक्षधर है। गनी पाकिस्तान के लिए संदिग्ध रहे हैं और उन्होंने पाकिस्तान के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी भारत के साथ बेहतर संबंध बनाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके बावजूद अफगान वार्ता सफल होने के बाद भी पाकिस्तान खुद को विजेता की तरह पेश करेगा। वाशिंगटन में वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स के क्षेत्रीय विशेषज्ञ मिचेल कुगेलमैन का कहना है कि पाकिस्तान इस शांति वार्ता का रणनीतिक लाभ लेने का प्रयास करेगा। क्योंकि इससे उसका सहयोगी तालिबान मजबूत होगा, जिससे भारत का अफगानिस्तान से सहयोग कम हो सके।
पाकिस्तानी अधिकारी इस बात से इनकार करते हुए कहते हैं कि वर्षों से घरेलू आतंकवाद से घिरे पाकिस्तान को पड़ोसी देश में इस तरह की अशांति देखने की इच्छा नहीं है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक साक्षात्कार में कहा कि पाकिस्तान के प्रबुद्ध लोग शांति और स्थिरता चाहते हैं। हमारी हस्तक्षेप करने की मंशा नहीं है। कुगेलमैन का कहना है कि यदि शांति प्रक्रिया बहाल हो जाती है और अमरीकी सेना अफगानिस्तान छोड़ देती है तो तालिबान फिर से मजबूत हो जाएगा। इससे पिछली बार की तरह अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन शुरू हो और महिला अधिकारों को कुचला जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना कि शांति वार्ता से अच्छे की उम्मीद कम है, क्योंकि इससे नेताओं में विभाजनकारी सोच के चलते लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा होगा।