दादाजीः ये तो हमारे मत का सिद्धांत ही नहीं है। इस मत में न कोई जोर है न जबर्दस्ती। हम न छोड़ने में न तोड़ने में विश्वास करते हैं, हम जोड़ने में विश्वास करते हैं। टूटे हुए तिनके को गुरु जोड़ सकता है। जो प्रेमी हैं, वे आते हैं। हमारे मत में प्रचार नहीं है, न किसी को जबर्दस्ती मत का अनुयायी बनाया जा सकता है। अपने दर्शन देकर, अपने वचन सुनाकर कहते हैं। जिनके भाग्य नहीं जगे हैं, वे नहीं आ पाते हैं। बड़भागी (सौभाग्यशाली) यहां आ पाएंगे।