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जरूर पढ़िए राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज का ये साक्षात्कार, देखें वीडियो

राधास्वामी मत के अधिष्ठाता और आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) ने ‘पत्रिका’ को दिए साक्षात्कार में धर्म और राजनीति के कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की।

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Bhanu Pratap Singh

Jul 26, 2017

dadaji maharaj

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आगरा। राधास्वामी मत के अधिष्ठाता और आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) का 88वां जन्मदिवस 27 जुलाई को है। उनका जन्मदिन मनाने के लिए देश-विदेश के हजारों सत्संगी आ गए हैं। हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा में भारी भीड़ है। दादाजी महाराज के जन्मदिवस पर हजूरी भवन में सत्संग होगा। प्रोफेसर अगर प्रसाद माथुर आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। दुनिया के गिनेचुने लोगों में उनकी गिनती होती है। जन्मदिवस के मौके पर दादाजी महाराज ने पत्रिका से लंबी बातचीत की। उन्होंने कहा कि दुनिया में प्यार बांटने की जरूरत है। उन्होंने जीवों के उद्धार से लेकर राजनीति पर भी अपने विचार रखे।

पत्रिकाः आपके जन्मदिवस पर देश-विदेश के हजारों लोग आए हैं, क्या कहना चाहते हैं?
दादाजीः प्यार, इस समय अगर आवश्यकता है तो प्यार की है। सद्भावना की है। मेलजोल की है। देश और सारे जगत को एक नई दिशा देने की आवश्यकता है, जिसका आधार सहनशीलता, सद्भाव और प्रेम है। इससे बढ़कर कुछ है नहीं।


पत्रिकाः क्या प्रेम राजनीतिक बदलाव से मिल सकता है
दादाजीः प्रेम तो हर एक से मिल सकता है। प्रेम तो व्यापक है। यह तो वैसे ही है जैसे जिन्दगी जीने के लिए जल। जब जल के स्रोतों को भी समाप्त कर दें, तब कठिनाइयां पैदा होती है।

पत्रिकाः प्रेम कहीं खो रहा है, दुनिया में और भारत से?
दादाजीः प्रेम कही नहीं खोता है। जहां रहता है, ऊपर रहता है। जब ठीक प्रकार से समझा नहीं जाता तो ऊपर चढ़ जाता है। मालिक खुद ही प्रेम स्वरूप हैं। किसी न किसी तरीके से दुनिया में कलह, क्लेश हो जाता है, नाना उत्पीड़न हो जाता है, पीड़ितों की संख्या बढ़ जाती है, तब अवतार होता है। उनका संदेश प्रेम होता है।

पत्रिकाः भारत को ऋषि मुनियों की धरती कहा जाता है, फिर भी अपने देश में प्रेम का अभाव है?
दादाजीः ये तो अपनी-अपनी दृष्टि का सवाल है। अभाव नहीं होता है। व्यक्ति इतना नीचे रपट जाता है कि वह ऐसे अभावों को स्वयं आमंत्रित करता है। काल और माया के जाल में फँसकर अपने आपको स्वयं घेर लेता है। मोह के बंधन में जकड़ लेता है। कामुक हो जाता है और इसकी वजह से न जाने कितने हिंसक अपराध होते हैं।

पत्रिकाः माया के जाल से बाहर कैसे आ सकते हैं?
दादाजीः गुरुभक्ति से। गुरु माया के जाल को काट देते हैं। गुरु सबकुछ जानते हुए भी किसी से कुछ कहते नहीं है। वे बड़ी गलती में हैं, जो यह समझते हैं कि गुरु ने कुछ नहीं देखा। वे सबकुछ देख रहे हैं। जब उचित समय होगा, तो ये सब जाल काट देंगे। जो सच्चे जीव हैं, उन्हें ले जाएंगे, उनका उद्धार कर देंगे।


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पत्रिकाः उद्धार का क्या अर्थ है?
दादाजीः उद्धार का अर्थ है कि दुनिया के फंसाव से मुक्ति हो जाए। जो सुरत है, वो अपने निजी घर में वाप चली जाए। आप लोग इसे मोक्ष कहते हैं। सुरत (जीवात्मा) को अपने स्थान पर पहुंचाना उद्धार है।

पत्रिकाः वह समय कब आएगा जब देश-दुनिया के लोग राधास्वामी मत के अनुयायी हो जाएंगे?
दादाजीः ये तो हमारे मत का सिद्धांत ही नहीं है। इस मत में न कोई जोर है न जबर्दस्ती। हम न छोड़ने में न तोड़ने में विश्वास करते हैं, हम जोड़ने में विश्वास करते हैं। टूटे हुए तिनके को गुरु जोड़ सकता है। जो प्रेमी हैं, वे आते हैं। हमारे मत में प्रचार नहीं है, न किसी को जबर्दस्ती मत का अनुयायी बनाया जा सकता है। अपने दर्शन देकर, अपने वचन सुनाकर कहते हैं। जिनके भाग्य नहीं जगे हैं, वे नहीं आ पाते हैं। बड़भागी (सौभाग्यशाली) यहां आ पाएंगे।

पत्रिकाः बहुत से सत्संगी कहते हैं कि दादाजी महाराज चमत्कारी हैं?
दादाजीः मैं कोई चमत्करी नहीं हूं, मैं तो साधारण व्यक्ति हूं। ये तो हर एक का दृष्टिकोण है, कोई कुछ देखता तो कोई कुछ। कोई क्या देखता है, ये तो उनसे पूछो, मुझसे क्या पूछते हो। कुछ बातों का प्रचार नहीं किया जाता है।

पत्रिकाः विदेश में राधास्वामी मत की क्या स्थिति है?
दादाजीः देश-विदेश की बात क्यों करते हो। सारा जहान जाल और जंजाल है, जिसमें बांध लिया है।

पत्रिकाः जन्मदिवस पर क्या संदेश देना चाहते हैं?
दादाजीः लोग परेशान हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, उन लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। अपने मूलभूत अधिकारों को दृढ़ता के साथ मांगना होगा। ये बात समझ लो कि कोई भी पॉलिटिकल सिस्टम पूर्ण नहीं है। ये प्रजातंत्र वाद भी पूर्ण नहीं है। पांच साल में एक दफा वोट डाले जाते हैं, लेकिन अन्य राजनीतिक तंत्र से प्रजातंत्र बेहतर है। एक बात जरूर कहूंगा कि जब सत्ता किसी पार्टी या किसी व्यक्ति में आ जाती है, बड़ा नशा होता है।