
वडोदरा में 31 जुलाई 2019 को हुई बारिश की फाइल फोटो।
Ahmedabad. जलवायु परिवर्तन के चलते अब मौसम का मिजाज बदल रहा है। जिससे गर्मी के दिनों में ज्यादा गर्मी पड़ रही है, तो मानसून में बारिश का पैटर्न भी बदल रहा है।
वडोदरा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय (एमएसयू) के जलवायु परिवर्तन संस्थान एवं शोध केंद्र के शोध में यह तथ्य सामने हैं।जलवायु परिवर्तन एवं शोध केंद्र के प्रो. चिरायु पंडित ने डॉ. संस्कृति मुजुमदार के मार्गदर्शन में जलवायु परिवर्तन विषय पर यह शोध किया है। पंडित बताते हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार के मौसम विभाग सहित की एजेंसियों से मिले 30 साल के आंकड़े के शोध अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कई प्रमाण पाए हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण वडोदरा में अब पूरे चौमासे (चार माह) की एक चौथाई बारिश अकेले जून या जुलाई महीने में यानी एक महीने में हो रही है। इसमें भी एक महीने की औसत बारिश एक ही दिन में होने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। इसके चलते बाढ़ की स्थिति बन जाती है। वर्ष 2005 में जून महीने में 135 मिलीमीटर औसत बारिश हुई। इसके मुकाबले 29 जून 25 को एक ही दिन में 238 मिलीमीटर बारिश हो गई। वर्ष 2019 में जुलाई महीने में 327 मिलीमीटर औसत बारिश हुई, जबकि 31 जुलाई 2019 को एक ही दिन में 351 मिलीमीटर पानी गिर गया। अगस्त 1978 में 279 मिलीमीटर औसत वर्षा के मुकाबले 17 अगस्त 1978 को एक दिन में 224 मिलीमीटर बारिश हुई थी। वडोदरा में मानसून में औसतन 37 दिन बारिश होती है।
पंडित बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात का रास्ता भी बदला है। येे अब मध्यप्रदेश के रास्ते भी गुजरात में आते हैं। एक दशक पहले तक चक्रवात तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश होते हुए गुजरात की ओर बढ़ते थे। ऐसे में अब गुजरात में चक्रवात की संख्या बीते कुछ सालो में बढ़ी है। 15 फरवरी से 15 जून, अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर में चक्रवात की संभावना अधिक रहती है। अरब या बंगाल उप महासागर में हर साल चार से पांच ऐसे चक्रवात उत्पन्न होते हैं, जो गुजरात को प्रभावित करते हैं।
मौसम विश्लेषक मुकेश पाठक कहते हैं कि मेडन जूलियन ऑसिलेशन, यानी बादलों का एक बड़ा समूह पृथ्वी का चक्कर लगाता रहता है। मानसून के मौसम में यह दो या तीन बार भारत से गुजरता है, उससे भी बारिश होती है।
आमतौर पर दक्षिण गुजरात में अधिक बारिश होती थी। अब कच्छ में भी मूसलाधार बारिश होती है। पहले भुज का हमीरसर तालाब कभी-कभार भरता था। जब ये भरता था, तब छुट्टी होती थी। अब यह तालाब हर मानसून में लगभग भर जाता है। राजस्थान के रेगिस्तान, चेन्नई, बंबई जैसे शहरों में बाढ़ की स्थिति जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम कह सकते हैं।
शोध में सामने आया कि शहरों में ऊंची इमारतों के कारण हवा की दिशा और गति बदलती है। जिसके कारण, शहर के एक क्षेत्र में बारिश होती है, तो दूसरा हिस्सा पूरी तरह से सूखा रह जाता है।अर्बन हीट आयलैंड के चलतेे शहरों में रातें भी गर्म पंडित बताते हैं कि शहरों में अमूमन दिन में तापमान बढ़ने से जमीन की गर्मी डेढ़ से दो किलोमीटर ऊपर जाती है, लेकिन रातटें यह स्तर घटकर 100 मीटर तक आ जाता था, लेकिन क्लाइमेट चेंज के चलते शहरी क्षेत्र की जमीन की गर्मी रात में भी नीचे नहीं आती, जिससे रातों में भी गर्मी के दिन बढ़ गए हैं। गांवों में अभी भी रात को ठंडक हो जाती है। शहरीकरण बढ़ने से बढ़ रहे तापमान को अर्बन हीट आयलैंड कहते हैं। ये जमीन के सरफेस के आधार पर वातावरण के बीच होने वाले इंटरेक्शन से बाउंड्री लेयर बनती है।
Published on:
07 Jul 2025 10:26 pm
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