
Gujarat: पाटन में रानी की वाव दिखी भगवान वराह प्रतिमा
उपेन्द्र शर्मा
वराहवतार.....(भगवान विष्णु)
भगवान विष्णु के दशावतारों में से तीसरे अवतार हैं भगवान वराह। जिनकी उत्पत्ति ब्रह्माजी की नासिका से हुई थी। वराह का अर्थ है शूकर (wild boar)। कहानी कुछ यूँ है कि एक राक्षस हिरण्याक्ष ने पृथ्वी पर आक्रमण किया और अपने चारों ओर विष्ठा की दीवार बना ली ताकि कोई देवता उसके पास जाकर उसे मार ना सके। उस दीवार को तो केवल शूकर (वराह) ही भेद सकता था तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षार्थ वराह के रूप में अवतार लिया। वराहवतार के बहुत ही कम मन्दिर बने हुए हैं। पिछले 800-1000 वर्षों में बने मन्दिरों में तो नहीं लेकिन उससे पुराने मन्दिरों की दीवारों पर इनकी प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। ज्यादातर प्रतिमाओं में इन्हें अपने थूथन या दांत पर पृथ्वी को उठाए हुए दिखाया जाता है।
ऐसी ही एक प्रतिमा मुझे दिखी रानी की वाव (पाटन गुजरात) नामक पुरास्थली पर। करीब 500 प्रतिमाओं के बीच। यह पुरास्थली वर्ष 1955 में खुदाई के दौरान निकली जो कि पानी की एक बावड़ी (stepwell) है। आर्कियोलॉजोकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के रेकोर्ड के अनसार यह बावड़ी प्राचीन लुप्त हो चुकी नदी सरस्वती के मुहाने पर बनी हुई थी और आज भी यह भूमिगत जलधारा के माध्यम से सरस्वती नदी से जुड़ी हुई है। यह स्थान राजस्थान के जालोर सिरोही जिलों से करीब 100 किलोमीटर और अहमदाबाद से भी करीब 100 किलोमीटर दूर है। इस स्थान को वर्ष 2014 में युनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था।
वराह....
अजमेर स्थित राजकीय संग्रहालय में भी एक प्रतिमा पत्थर पर बनी हुई है जो करीब 1000 साल पुरानी है। वो प्रतिमा भी वराहवतार विष्णु की है। झालावाड़ और अलवर जिलों सहित मध्यप्रदेश के कुछ स्थानों में भी इस तरह की प्रतिमाएँ निकली हैं। अजमेर के एक गांव का नाम बघेरा (केकड़ी) है वहां भी इनका एक मन्दिर है जो आज भी अक्षुण्ण है।
हमारे देश के प्रसिद्ध गणितज्ञ वराहमिहिर का नाम भी इन्हीं अवतार के नाम पर हैं इस तरह का नाम दक्षिण भारत में अब भी बहुत से लोगों का है लेकिन उत्तर भारत में अब यह नाम सामान्यतः सुनने को नहीं मिलता है। देश के एक राष्ट्रपति वी.वी. गिरी का भी पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी था।
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Published on:
04 Aug 2019 07:56 pm
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