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औषधीय पौधों की खेती देगी रोजगार की ‘संजीवनी’

- अन्नदाता के अरमानों को medicinal plants लगाएंगे पंख- कोरोना की पीर के बाद उभर रहा कारोबार

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औषधीय पौधों की खेती देगी रोजगार की 'संजीवनी'

औषधीय पौधों की खेती देगी रोजगार की 'संजीवनी'

-रमेश शर्मा
अजमेर। कोरोना की टीस देश-दुनिया को नया सबक दे गई है। इस काल में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भरोसे के रूप में आयुर्वेद पद्धति उभरकर सामने आई। इसी का नतीजा है कि औषधीय पौधों की खेती और कारोबार ने आगामी वर्षों में रोजगार की संभावानाओं के नए द्वार खोल दिए हैं।

गुजरात के जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ साझेदारी में पारंपरिक औषधियों से संबंधित वैश्विक केन्द्र शुरू होने के बाद इस उम्मीद को पंख लगे हैं। राष्ट्रीय औषधि पादप बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2026 तक औषधीय पौधों का कारोबार 14 सौ करोड़ तक पहुंचने की संभावना है, जबकि वर्ष 2019 में यह कारोबार मात्र चार सौ करोड़ का था। राजस्थान पादपों की बम्पर पैदावार होती है, लेकिन जानकारी के अभाव और जागरुकता की कमी से इसका फायदा नहीं मिल पाता। आयुर्वेद के बढ़ते महत्व को देखते हुए औषधीय पौधों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। कोरोनाकाल में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों की डिमांड बड़े स्तर पर रही। हर्बल दवाओं के उत्पादन में चीन का दबदबा है। विश्व बाजार में उसकी हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है, जबकि भारत की मात्र सात फीसदी। अन्य देशों में भी औषधीय पौधों की खेती के प्रति लोगों का रूझान बढ़ रहा है।

पारंपरिक स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली का देश में तेजी से आधुनिकीकरण हो रहा है। विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में औषधीय पौधों की इनकी छाल, बीज, फूल, जड़ एवं पत्तियों आदि का उपयोग होता है। बढ़ती मांग के कारण इनके उत्पादों के दाम अच्छे मिलने लगे हैं। किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। इसलिए खेती के प्रति आकर्षण भी बढ़ रहा है। इसके लिए अधिक निवेश और ना ही अधिक जमीन की जरूरत होती है। किसानों को समझाया जा रहा है कि वे नियमित फसल के साथ अपने खेतों में जड़ी-बूटियां या औषधीय पौधे भी लगाएंगे तो बहुत फायदे में रहेंगे। साथ ही किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए 30 से 70 फीसदी तक अनुदान भी दिया जा रहा है।

डब्ल्यूएचओ से करार
डब्ल्यूएचओ ने हाल ही भारत सरकार के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत गुजरात के जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारम्परिक औषधि केन्द्र की आधारशिला रखी गई। इसे पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ा कदम माना जा रहा है। यह संस्थान आधुनिक विज्ञान और प्राद्योगिकी की मदद से दुनिया भर की पारंपरिक औषधि संबंधी ज्ञान जुटाने के लिए काम करेगा।

राजस्थान में प्रचुर उत्पादन
राजस्थान में 865 हैक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती होती है। हालांकि यहां वन क्षेत्र में भी औषधीय पौधों का प्रचुर उत्पादन होता है। इनके बारे में समझ या जागरुकता की कमी से इनका उतना दोहन नहीं होता। उत्पादकों तथा जंगल से इन जड़ी बूटियां बीनने वाले आदिवासियों की अच्छी आय हो सकती है।

क्यों हैं संभावनाएं
80 फीसदी लोग दुनिया में जिन्‍हें हर्बल उत्पादों पर भरोसा
40 फीसदी दुनिया की औषधीय सामग्री पौधों व प्राकृतिक वस्तुओं से निर्मित।
17 अति जैवविविधता वाले देशों में से भारत एक।
7 फीसदी का योगदान है विश्व जैव विविधता में
15 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं भारत में
18000 पादप प्रजातियां हैं देश में
8000 पौधों का भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण ने रिकॉर्ड तैयार किया
7000 से अधिक प्रजातियों में औषधीय गुण मौजूद
2,800 प्रजातियों का भारतीय चिकित्सा में व्यापक प्रयोग

एक्सपर्ट कमेंट ...
आयुष मंत्रालय की ओर से औषधीय पौधों की खेती, प्रोसेसिंग एवं मार्केटिंग पर अच्छा काम हो रहा है। निर्यात भी निरंतर बढ़ रहा है। 'आयुष मार्का' से यह प्रक्रिया अधिक सुगम हो जाएगी। कई किसान उत्पादक संगठन और स्टार्टअप भी इस क्षेत्र में आ रहे हैं, इसलिए रोजगार सृजन की अच्छी संभावनाएं हैं। गांधीनगर में वैश्विक आयुष निवेश और नवाचार शिखर सम्मेलन में मैंने भी शिरकत की थी। इसमें निवेश आकर्षिक करने, निर्यात की रणनीति बनाने और औषधीय पौधों के विपणन की सुविधा देने के लिए उद्योगों और किसान संघों के बीच कई करार भी हुए हैं। - डॉ प्रमोद दत्त शर्मा, प्रोजेक्ट अधिकारी, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, जयपुर

इनका कहना है...
राजस्‍थान का पारिस्थिकी तंत्र पूरी तरह औषधीय पौधों की खेती के अनुकूल है, लेकिन किसानों में जागरुकता की कमी है। इन्‍हें पानी की भी अधिक आवश्‍यकता नहीं होती, नगदी फसल होने से किसानों की आय भी अच्‍छी होती है। दवाएं बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में जड़ी-बूटियों का नहीं मिल पाने से अब हर्बल कम्‍पनियां हाथों हाथ उत्‍पाद खरीदने लगी हैं। इससे किसानों का रुझान इस ओर बढ़ रहा है।
-संतोष कुमार स्‍वामी, किसान, बौंली, सवाईमाधोपुर

इनका कहना है...
औषधीय पौधों की खेती आज के दौर में बहुत ही लाभदायक है। आज भी मेरे पास डिमांड ज्‍यादा है जबकि मैं इतना सप्‍लाई नहीं कर पा रहा हूं। सामान्‍य फसलों के बीच भी इसकी बुवाई की सकती है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से भी कई योजनाएं, प्रशिक्षण और अनुदान आदि की सुविधाएं हैं। किसानों को इसका फायदा उठाना चाहिए। - गणपत लाल नागर, किसान गुलाबपुरा बारां