अजमेर.
प्रतिस्पर्धात्मक दौर में बेटियों का आगे बढऩा अच्छा संकेत है। बेटियां परिश्रम और लगन से हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर रही हैं। बदलते माहौल और चुनौतियां के बीच छात्रों को अधिक मेहनत करने की जरूरत है। यही उनके लिए उपयुक्त होगा। यह बात राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र ने मंगलवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के नवें दीक्षान्त समारेाह में कही। समारेाह में उन्होंने 33 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक, एक कुलाधिपति पदक और 18 शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधियां वितरित की।
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उन्होंने कहा कि जीवन में लक्ष्य और संबंधित विषय की स्पष्ट जानकारी के बगैर कामयाबी हासिल नहीं हो सकती है। शिक्षा के कारण ही व्यक्ति में विवेक, समझबूझ और देश-समाज के विकास की अवधारणा विकसित होती है। युवाओं-विद्यार्थियों को शोध प्रवृत्ति, नवाचार और अध्ययनशीलता के गुण सतत बने रहने चाहिए। आज भारत की उपेक्षा कोई मुल्क नहीं कर सकता है। हमारे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षक और उद्यमियों ने दुनिया में वर्चस्व स्थापित किया है। उन्होंने अपने अनुभव, ज्ञान और शोध से पहचान बनाई है। नौजवानों को देश के सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक विकास में इसे कायम रखना चाहिए। इससे पूर्व कुलपति प्रो. आर. पी. सिंह ने प्रतिवेदन पेश किया। कुलसचिव संजय माथुर ने स्वागत किया।
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अब नहीं हैं हम विश्व गुरू
वाटरमैन और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा कि प्राचीनकाल में भारत अपने आध्यात्म, सनातन परम्परा, ज्ञान, जल और पर्यावरण संरक्षण, वसुधैव कुटुम्बकम जैसे मूल्यों के कारण विश्व गुरू कहलाता था। हमने पंचतत्वों के सिद्धांत से विश्व को राह दिखाई। दुर्भाग्य से इन गुणों से दूर हटते ही विश्व गुरू की पदवी हमसे छिन चुकी है। इंजीनियरिंग और तकनीकी ज्ञान ने सुविधाएं और विकास तो किया, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों को खतरे में डाल दिया है।
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प्राचीन प्रबंधन शिक्षा हमारे वाणिज्य, सामाजिक, पारिवारिक विकास का आधार थी। मौजूदा दौर में यह सतत विकास का मॉडल बनकर रह गई है। इसमें सबसे अहम जल है। पूरी दुनिया में अंधाधुंध जलदोहन से धरती की प्रकृति और मौसम बदल चुके हैं। हमें प्रकृति को पुनजीर्वित करना है, तो पानी का मूल्य समझना होगा।
शिक्षा में नहीं हो तनाव और अवसाद
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा कि अच्छी शिक्षा प्राप्ति में तनाव, अवसाद का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। जीवन में चुनौतियों से युवाओं को घबराने, तनावग्रस्त होने के बजाय बुलंद हौसले से लक्ष्य का पीछा करना चाहिए। जिस तरह बेटियां पदक लेने और परिणाम में श्रेष्ठतम साबित हो रही हैं, वह छात्रों के लिए चुनौती है। बालिका शिक्षा की यह प्रगति सरकार के लिए सुखद संकेत है।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों की भूमिका भी कुम्हार की तरह है। वास्तव में शिक्षक ही विद्यार्थियों के असली निर्माता हैं। प्रदेश में सरकार ने उच्च शिक्षा को सर्वोच्च सोपान तक पहुंचाने के लिए रोडमैप बनाया है। पत्रकारिता और विधि विश्वविद्यालय पुन: प्रारंभ किए गए हैं। प्रदेश में 50 कॉलेज खुल चुके हैं। पुराने पाठ्यक्रमों के बजाय कौशल एवं लघु व्यवसाय, मिश्रित पाठ्यक्रमों की मांग बढ़ रही है। विद्यार्थियों को वैश्विक स्तर पर तैयार करने के प्रयास जारी हैं।