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जिले का शुभंकर और प्रवासी पक्षी खरमौर बरसात में ही दिखाई देता है। इसके बाद यहां कहां चला जाता है, इस पर रहस्य बना हुआ है। बड़े पर्यावरण विज्ञानी, प्रकृति प्रेमी और जासूस भी इसको पूरे साल आसानी से नहीं ढंढपाते हैं।
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और वन विभाग सहित बर्ड कंजर्वेशन सोसायटी के दल ने बीते दो-तीन साल में खरमौर को शोकलिया और अन्य इलाकों में चिन्हित किया है। सोसायटी के अध्यक्ष महेंद्र विक्रम सिंह की मानें तो बरसात शुरू होते ही खरमौर चारागाह, घास वाले बीड़ और कपास के खेतों में दिखता है।
जिले के शोकलिया, पीपरोली, लोहरवाड़ा, समोद, रामसर क्षेत्र में कुछ नर और दो मादा खरमौर देखे भी गए हैं। बर्ड लाइफ इन्टरनेशनल और जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन ने खरमौर को अति दुर्लभ पक्षी क सूची में बताया है। इन पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
यूं खास है यह पक्षी
अंग्रेजी में खरमौर को लेसर फ्लोरेकिन के नाम से जाना जाता है। नर खरमौर का रंग काला और पंख सफेद होते हैं। इसके सिर पर मोर की तरह कलगी होती है। मादा खरमौर का रंग भूरा हेाता है। यह आसानी से दिखाई नहीं देती है।
वर्षा ऋतु में मादा खरमौर दो से चार अंडे देती है। प्रतिवर्ष अक्टूबर शुरू होते ही यह पक्षी अचानक रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाते हैं। फिर पूरे साल ये कहीं दिखाई नहीं देते हैं। इसका उत्तर पक्षी विशेषज्ञों के पास नहीं है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने दो-तीन साल पहले कुछ खरमौर पकड़कर सेटेलाइट ट्रांसमीटर लगाए थे। लेकिन इनकी अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है।
वन विभाग ने बनाया शुभंकर
वन विभाग ने दो साल पहले प्रत्येक जिले का शुभकंर पक्षी घोषित किया है। इसमें अजमेर के लिए खरमौर को शुभंकर बनाया गया है। लेकिन यह पक्षी बहुतायत में नहीं है। लोग इसको आसानी से देख भी नहीं सकते हैं। इसके बावजूद विभाग ने ऐसे पक्षी का चयन किया है। मालूम हो कि जिले से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) लगभग गायब हो चुका है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। जैसलमेर में भी गिने-चुने गोडावण ही दिखाई देते हैं।
Published on:
16 Feb 2018 07:30 am
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