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30 साल से कागजों में कैद है कॉलेज, नहीं मिल रहे अजमेर की इस यूनिवर्सिटी को

यूनिवर्सिटी के एक्ट में नहीं प्रावधान। वहीं नए विश्वविद्यालयों पर राज्य सरकार हो रही है विशेष मेहरबान।

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no constituent college of mds university ajmer

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राज्य सरकार नए विश्वविद्यालयों पर मेहरबान है। महज एक-दो साल में खुले तीन विश्वविद्यालयों को सरकार ने संघटक कॉलेज का तोहफा दिया है,जबकि तीस साल से संघटक कॉलेज मांग रहे महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय को नजरअंदाज किया जा रहा है।

विश्वविद्यालय के एक्ट में भी इसका प्रावधान नहीं किया गया है। राजस्थान विश्वविद्यालय, मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय उदयपुर सहित कई विश्वविद्यालयों के पास एक या दो संघटक कॉलेज हैं।

यह कॉलेज सीधे तौर पर विश्वविद्यालयों के नियंत्रण में होते हैं। कॉलेज और विश्वविद्यालय का स्टाफ परस्पर कक्षाएं लेते हैं।

जिन कॉलेज या विश्वविद्यालयों में शिक्षक और अथवा विद्यार्थी कम होते हैं। उन्हें इससे फायदा होता है। अलबत्ता संघठक कॉलेज बनाने के मामले में सरकार दोहरी नीति अपना रही है।

इन्हें मिल गए संघटक कॉलेज

सरकार ने हाल में तीन विश्वविद्यालयों के संघटक कॉलेज बनाए हैं। इनमें पं. दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय के लिए श्री कल्याण राजकीय महाविद्यालय, महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय से एमएसजे राजकीय महाविद्यालय और गोबिंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय से श्री गोबिंद गुरु स्नातकोत्तर महाविद्यालय को संघटक कॉलेज बनाकर जोड़ा गया है।

संघटक कॉलेज न एक्ट में गुंजाइश

वर्ष 1987 में स्थापित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का तीस साल में कोई संघठक कॉलेज नहीं है, जबकि यहां अंगुलियों पर गिनने लायक ही शिक्षक हैं। विद्यार्थियों की संख्या भी 1100-1200 से ज्यादा नहीं है।

अजमेर में एसपीसी जीसीए और दयानंद कॉलेज बड़े कॉलेज हैं। इन्हें विवि का संघटक कॉलेज बनाने की बरसों से मांग उठती रही

लेकिन न सरकार न ही विश्वविद्यालय ने इसे तवज्जो दी है। उधर, विश्वविद्यालय के एक्ट में भी संघटक कॉलेज बनाने की गुंजाइश नहीं रखी गई।

इंजीनियरिंग कॉलेज पर टिकी निगाहें

मदस विश्वविद्यालय की निगाहें अजमेर के बॉयज और महिला इंजीनियरिंग कॉलेज पर टिकी हुई हैं।

दोनों कॉलेज मौजूदा वक्त राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हैं। सरकार इन कॉलेज को विश्वविद्यालय के सुपुर्द करना चाहती है।

यह संघटक कॉलेज बनेंगे या नहीं, इसका फैसला सरकार पर निर्भर है। इसके लिए विश्वविद्यालय के एक्ट में भी बदलाव करना जरूरी होगा।

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