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प्रत्येक अभिभावक के लिए सबसे जरूरी संदेश, शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो

-सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा यह संदेश हर अभिभावक को पढ़ना चाहिए -शिक्षा के नाम पर बच्चों को टेडी बियर बनाया जा रहा है, कोचिंग का खेल -बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर ही क्यों बनेगा, किसान, कलाकार, गायक क्यों नहीं

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Students

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अलीगढ़। कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजीनियर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है। अब नेचुरल देसी नस्ल छोटी रह जाती है जो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक ही नहीं रहती। अब मैं आपको बीस साल पहले ले जाता हूँ जब सरकारी स्कूलों का दौर था। जब एक औसत लड़के को साइंस ना देकर स्कूल वाले खुद ही लड़के को भट्ठी में झोंकने से रोक देते थे। आर्ट्स और कॉमर्स देकर लड़कों को शिक्षक बाबू, पटवारी, नेता और व्यापारी बनाने की तरफ मोड़ देते थे। मतलब साफ है कि पानी को छोटी-छोटी नहरों में छोड़ कर योग्यता के हिसाब से अलग अलग दिशाओं में मोड़ दो ताकि बाढ़ का खतरा ही पैदा न हो।

स्कूल में पिटाई

शिक्षक लड़के की गलती करने पर उसको डंडे से पीट-पीटकर साक्षर बनाने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबूत कर देते थे। पापा-मम्मी से शिकायत करो तो दो झापड़ पापा-मम्मी भी जड़ देते थे और गुरुजी से सुबह स्कूल आकर ये और कह जाते थे कि अगर नहीं पढ़े तो दो डंडे हमारी तरफ से भी लगाना। अब पक्ष और विपक्ष एक होता देख लड़का पिटने के बाद सीधा फील्ड में जाकर खेलकूद करके अपना तनाव कम कर लेता था। खेलते समय गिरता पड़ता और कभी-कभी छोटी-मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता, पर कभी तनाव में नहीं आता। दसवीं आते-आते लड़का लोहा बन जाता था। तनावमुक्त होकर मैदान में तैयार खड़ा हो जाता था हर तरह के तनाव को झेलने के लिए।

शिक्षा स्कूल से निकल कर ब्रांडेड शोरूम में आ गई

फिर आया कोचिंग और प्राइवेट स्कूलों का दौर। यानी की शिक्षा स्कूल से निकल कर ब्रांडेड शोरूम में आ गई। शिक्षा सोफेस्टीकेटेड हो गई। बच्चे को गुलाब के फूल की तरह ट्रीट किया जाने लगा। मतलब बच्चा 50% लाएगा तो भी साइंस में ही पढ़ेगा। हमारा मुन्ना तो डॉक्टर ही बनेगा। हमारा बच्चा IIT से B.tech करेगा । शिक्षक अगर हल्के से भी मार दे तो पापा-मम्मी मानवाधिकार की किताब लेकर मीडिया वालों के साथ स्कूल पर चढ़ाई कर देते हैं कि हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया? मीडिया वाले शिक्षक के गले में माइक घुसेड़ कर पूछने लग जाते हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यहाँ से आपका बच्चा सॉफ्ट टॉय बन गया, बिलकुल टेडी बियर की तरह। अब बच्चा स्कूल के बाद तीन-चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया। खेलकूद तो भूल ही गया। फलाने सर से छूटा तो ढिमाके सर की क्लास में पहुंच गया। बचपन किताबों में उलझ गया और बच्चा कॉम्पटीशन के चक्रव्यूह में ही उलझ गया। क्यों भाई आपका मुन्ना केवल डॉक्टर और इंजीनियर ही क्यों बनेगा, वो आर्टिस्ट, सिंगर, खिलाड़ी, किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारखाने का मालिक क्यों नहीं बनेगा। हजारों फील्ड हैं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के वो क्यों ना चुनो।

डॉक्टर-इंजीनियर ही क्यों

अभी कुछ दिनों पहले मेरे महंगे जूते थोड़े से फट गए। पता किया एक लड़का अच्छी तरह से रिपेयर करता है। उसके पास गया तो उसने 200 रुपये मांगे रिपेयर करने के और कहा एक हफ्ते बाद मिलेंगे। उस लड़के की आमदनी का हिसाब लगाया तो पता चला कि लगभग एक लाख रुपये महीने कमाता है। यानी कि पूरा बारह लाख पैकेज। वो तो कोटा नहीं गया। उसने अपनी योग्यता को हुनर में बदल दिया और अपने काम में मास्टर पीस बन गया। कोई शेफ़ बन कर लाखों के पैकेज़ में फाइव स्टार होटल में नौकरी कर रहा है तो कोई हलवाई बन कर बड़े-बड़े ईवेंट में खाना बना कर लाखों रुपये ले रहा है। कोई डेयरी फार्म खोल कर लाखों रुपये कमा रहा है। कोई दुकान लगा कर लाखों कमा रहा है तो कोई कंस्ट्रक्शन के बड़े-बड़े ठेके ले रहा है। तो कोई फर्नीचर बनाने के ठेके ले रहा है। कोई रेस्टोरेंट खोल कर कमा रहा है तो कोई कबाड़े का माल खरीद कर ही अलीगढ़ जैसे शहर में ही लाखों कमा रहा है तो कोई सब्जी बेच कर भी 20-25 हजार रुपये महीने कमा रहा है। कोई चाय की रेहड़ी लगा कर ही 40-50 हजार महीने के कमा रहा है तो कोई हमारे यहाँ कचौरी-समोसे और पकोड़े-जलेबी बेच कर ही लाखों रुपये महीने के कमा रहा है। मतलब साफ है भैया कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योग्यता और उस कार्य के प्रति अपनी रोचकता को हुनर में बदला। उस हुनर में मास्टर पीस बना। जरूरी नहीं है कि आप डॉक्टर और इंजीनियर ही बनें। आप कुछ भी बन सकते हैं। आपमें उस कार्य को करने का जुनून हो बस।

बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार आगे बढ़ाएं

हाँ तो अभिभावको/प्रियजनों, अपने बच्चों को टेडी बियर नहीं, बल्कि लोहा बनाओ लोहा। अपनी मर्जी की भट्ठी में मत झोंको उसको। उसे पानी की तरह नियंत्रित करके छोड़ो, वो अपना रास्ता खुद बनाने लग जाएगा। बच्चों पर नियंत्रण जरुर रखो। अगर वो अनियंत्रित हुआ तो पानी की तरह आपके जीवन में बाढ़ ला देगा। कहने का मतलब ये है कि शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो, क्यों सिंथेटिक बनाकर बच्चे का जीवन और अपनी खुशियों को बरबाद कर रहे हो। बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार आगे बढ़ने में सहयोग दें।