गांधीनगर कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में चातुर्मास प्रवचन गांधीनगर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को कहा कि आदमी को अनुकूलता और प्रतिकूलता से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।गांधीनगर में कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में चातुर्मास प्रवचन के दौरान गुरुवार को उन्होंने यह बात कही। वीर भिक्षु समवसरण में […]
गांधीनगर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को कहा कि आदमी को अनुकूलता और प्रतिकूलता से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
गांधीनगर में कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में चातुर्मास प्रवचन के दौरान गुरुवार को उन्होंने यह बात कही। वीर भिक्षु समवसरण में आचार्य महाश्रमण के साथ लोग नवरात्रि के संदर्भ में आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़े। मंत्रों के उच्चारण से पूरा वातावरण ऊर्जान्वित हो रहा था। आध्यात्मिक अनुष्ठान के बाद आचार्य कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि जो आत्मा है, वह ज्ञाता है और जो ज्ञाता है, वह आत्मा है। जिस साधन से आत्मा जानती है, वह ज्ञान आत्मा है। जैन दर्शन में आठ प्रकार की आत्माएं बताई गई हैं। एक द्रव्य आत्मा है, शेष सात आत्माएं भाव आत्माएं होती हैं। द्रव्य आत्मा सभी जीवों में होती है। उपयोग आत्मा भी हर जीव में होती है। दर्शन आत्मा भी सभी जीवों में होती हैं।
उन्होंने कहा कि कोई आत्मा ऐसी नहीं होती अथवा कोई ऐसा जीव नहीं होता, जिसमें ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम न हो। प्रत्येक जीव में कुछ न कुछ ज्ञान होता ही है। प्रेक्षाध्यान में उपयोग आत्मा की सक्रियता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान साधना में निर्मल उपयोग आत्मा रहे, उसके साथ कषाय न जुड़े। प्रियता और अप्रियता से बचने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म की साधना में भी ज्ञाता-द्रष्टा भाव हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। आदमी को अनुकूलता और प्रतिकूलता से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। शुद्धोपयोग हो तो कितनी कर्म निर्जरा हो सकती है। प्रेक्षाध्यान में शुद्धोपयोग रहने का अभ्यास हो जाए तो अध्यात्म की साधना अच्छी हो सकती है। साधक को अधिक से अधिक शुद्धोपयोग में रहने का प्रयास करना चाहिए। कषाय आत्मा और योेग आत्मा जितनी निष्क्रिय रहे, उतना ही साधक के लिए अच्छा हो सकता है। इस अवसर पर आचार्य ने प्रेक्षाध्यान का शिविर में शिविरार्थियों को प्रेक्षाध्यान के प्रयोग भी करवाए।