1942 Kumbh Mela: देश की आजादी से पहले आयोजित हुए आखिरी कुंभ में अंग्रेजों ने श्रद्धालुओं को प्रयागराज आने से रोकना शुरू कर दिया था। इसके पीछे अंग्रेजी हुकूमत की मंशा क्या थी, आइए जानते हैं…
1942 Kumbh Mela Ban: भारत 1947 में आजाद हुआ था। इससे पहले 1942 में प्रयागराज में आजादी से पहले आखिरी कुम्भ का आयोजन हुआ। इसकी तैयारी अंग्रेजी हुकूमत ने महीनों पहले तैयारी शुरू कर दी थी। कुंभ मेला चार जनवरी से चार फरवरी तक चलने वाला था। इससे पहले ही तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने एक अनूठा फरमान जारी किया।
अंग्रेजी फरमान के मुताबिक, श्रद्धालुओं को कुंभ में शामिल होने से रोका जा रहा था। अंग्रेजी हुकूमत ने निर्णय लिया कि देश के अलग-अलग हिस्सों से कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को रोका जाएगा। तय किया गया कि ट्रेनों से श्रद्धालुओं को प्रयागराज नहीं आने दिया जाएगा।
अंग्रेजी हुकूमत के इस फैसले से महाकुंभ में शामिल होने वाले से खलबली मच गई। दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत का दावा था कि कुम्भ के दौरान प्रयागराज में बमबारी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। इस विश्व युद्ध में जापान भी शामिल हो चुका था। ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत को यह डर था कि कहीं जापान प्रयागराज में बमबारी न कर दे और इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने कुंभ के समय यह फरमान जारी किया था।
प्रयागराज में बमबारी हो जाने के डर से ही तत्कालीन सरकार ने ट्रेनों से प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगाई ताकी कुंभ में कम भीड़ हो सके। हालांकि, प्रयागराज में बमबारी नहीं हुई और यह बात अफवाह साबित हुई, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के इस फैसले से देश के हजारों श्रद्धालु कुंभ में संगम स्नान करने से वंचित रह गए।
आपको बता दें कि इस दौरान भारत छोड़ो आंदोलन भी चल रहा था। HT की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजों ने बमबारी के डर से नहीं, बल्कि भारत छोड़ो आंदोलन के डर से लोगों के आने पर रोक लगाई थी। अंग्रेजी सरकार नहीं चाहती थी कि कुम्भ में देश के कोने-कोने से लोग संगम स्नान करने आएं। इसकी आड़ में संगम किनारे लाखों हिन्दुस्तानियों का जमावड़ा उनके खिलाफ चल रहे आंदोलन को ताकतवर बना दे।