Narak Chaturdashi 2024: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस त्योहार की काफी मान्यताएं है।
Narak Chaturdashi 2024: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस त्योहार की काफी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इस दिन लोग राक्षस पर भगवान श्रीकृष्ण की जीत का जश्न मनाते हैं। तो आइए जानतें हैं इस पौराणिक कथा के बारे में।
यह पर्व दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। हर साल इस पर्व को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को काली चौदस भी कहते है। पौराणिक कथाआों के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन यम के देवता यमराज की पूजा की जाती है और दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीपक भी जलाया जाता है। इस दिन यम के साथ-साथ कृष्ण पूजा और काली पूजा भी की जाती है। आइए जानते हैं आखिर नरक चतुर्दशी का पर्व क्यों मनाया जाता है और क्या है इसकी पौराणिक कथा?
नरक चतुर्दशी, जिसे काली चौदश या रूप चौदश के नाम से भी जाना जाता है। हर साल यह पर्व कार्तिक माह की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा ही महत्व होता है। यह पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, इसे मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन स्नान और उपवास रखने से व्यक्ति के सभी पापों का क्षय भी होता है, और उसे मोक्ष की प्राप्ति मिलती है। इस दिन विशेष रूप से काली देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें बुराई के नाशक और अंधकार को समाप्त करने वाली देवी कहा जाता है।
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा में यमराज और नरक की कहानी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्रचीन काल में एक नरकासुर नाम का राक्षस था। उसने अपनें पापो से स्वर्ग और पृथ्वी दोनों पर ही भारी आक्रोश किया हुआ था। उसने कई ऋषियों, संतों और देवताओं को भी बहुत परेशान कर रखा था। एक दिन उसकी क्रूरता और अत्याचारों से मनुष्य के साथ-साथ सभी देवतागण परेशान हो गए। उसने कई राजाओं और लोगों की 16,000 कन्याओं को बंदी भी बना लिया था। और उनसे जबरदस्ती विवाह भी करना चाहाता था। तत्पश्चात उन लड़कियों को उनके माता-पिता के पास जाने का निवेदन किया गया, जिसे उन्होनें अस्वीकार कर श्रीकृष्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा। बाद में यही श्रीकृष्ण की 16 हजार पत्नियां एवं आठ मुख्य पटरानियां मिलाकर सोलह हजार आठ रानियां कहलायी।
नरकासुर को यह श्राप मिला हुआ था कि वह स्त्री के हाथों मारा जाएगा और इस बात को श्रीकृष्ण जानते थे। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लिया और गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर के पास पहुंचे। वहा भगवान श्रीकृष्ण का सामना मुर नामक दैत्य और उसके 6 पुत्रों से हुआ जिन्हें भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर नामक राक्षस को समाप्त कर दिया।
इस तपस्या के फलस्वरूप, यमराज ने उसे नरक से मुक्त किया और उसे स्वर्ग की ओर भेजा। इसके बाद, यमराज ने यह निश्चय किया कि इस दिन सभी लोग अपने पापों का प्रायश्चित करें और यमराज की पूजा करें ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। तभी से नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।