CG Fraud News: दल्लीराजहरा जिले के शिक्षकों के डिजिटल सिग्नेचर की अनिवार्यता के नाम 1580 शालाओं से 50 लाख रुपए की ठगी की गई है।
CG Fraud News: छत्तीसगढ़ के दल्लीराजहरा जिले के शिक्षकों के डिजिटल सिग्नेचर की अनिवार्यता के नाम 1580 शालाओं से 50 लाख रुपए की ठगी की गई है। यह आरोप छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ दुर्ग संभाग के अध्यक्ष भुवन सिन्हा ने लगाया है। उनका कहना है कि जिले के विकासखंड स्रोत समन्वयकों और रायपुर की एक निजी डिजिटल सिग्नेचर प्रोवाइडर कंपनी ने यह वसूली की है।
उनके अनुसार प्रति शाला तीन हजार रुपए की ठगी की गई है। इस संबंध में उन्होंने उच्चाधिकारियों से जानकारी मांगी तब पता चला कि डिजिटल सिग्नेचर अनिवार्यता का विभागीय स्तर पर कोई आदेश जारी नहीं हुआ है। न ही किसी अधिकृत सरकारी एजेंसी ने इसके लिए कोई अनुमति ली है।
जिला शिक्षा अधिकारी मधुलिका तिवारी ने कहा की मुझे इस बारे में किसी की जानकारी नहीं है। न ही किसी प्रकार की मेरे समक्ष शिकायत की गई है। उन्होंने बताया कि डिजिटल सिग्नेचर प्रोवाइडर ने शिक्षकों को एक तथाकथित टैक्स इनवाइस या पावती दी, जिसमें स्कूल का नाम, तारीख या हस्ताक्षर तक नहीं थे। पावती देखकर ही फर्जी लगती है। शिक्षकों के पास अब जो पेन ड्राइव दी गई थी, वह भी पूरी तरह अनुपयोगी साबित हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि इस घोटाले से शिक्षकों में नाराजगी है। मामले की जांच कर राशि वापस कराई जाए। दोषी अधिकारियों पर मामला दर्ज किया जाए। उन्होंने भारत सरकार के मंत्री और छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
उन्होंने पत्र में कहा कि जब भी राज्य या केंद्र सरकार स्कूलों को भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वित्तीय सहायता देते हैं, तभी कुछ एनजीओ या सप्लायर एजेंसियां सक्रिय हो जाती हैं और उन्हीं से खरीदी करने का दबाव बनाती हैं। इस कारण से स्कूल विकास की योजनाएं अधूरी रह जाती हैं।
संघ के अध्यक्ष भुवन सिन्हा का कहना है कि यह मामला सिर्फ निचले स्तर का नहीं, बल्कि किसी उच्च अधिकारी की मौखिक साजिश प्रतीत होती है। अब यह मामला सार्वजनिक हुआ है, तो उच्च कार्यालयों और समन्वयकों ने अनभिज्ञता जताते हुए पल्ला झाड़ लिया है, जबकि बीआरसी (ब्लाक रिसोर्स सेंटर) कार्यालयों में विधिवत शिविर आयोजित किए गए थे।
उन्होंने बताया कि डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग केवल बड़े कार्यालयों या वित्तीय संस्थाओं में होता है, जहां आहरण-संवितरण जैसी प्रक्रियाएं बड़ी मात्रा में होती हैं। स्कूल स्तर पर ऐसी कोई आवश्यकता नहीं थी। चार वर्षों में किसी भी स्कूल ने इन डिजिटल सिग्नेचर पेन ड्राइव्स का एक बार भी उपयोग नहीं किया। विभाग ने इस विषय पर कोई प्रशिक्षण, दिशा-निर्देश या उपयोग संबंधी जानकारी भी नहीं दी। इससे स्पष्ट है कि पूरा मामला अनधिकृत और अवैध था।
प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और उच्च विद्यालयों के शिक्षकों को बताया गया कि विभागीय कार्यों के लिए डिजिटल सिग्नेचर आवश्यक है और इसके बिना कार्य नहीं होगा। शिक्षकों ने विभागीय आदेश समझकर रकम जमा कर दी। इस प्रकार लगभग 47 से 50 लाख रुपए की अवैध वसूली की गई।