राज्यपाल गहलोत ने भारतीय पर्यावरण चिंतन और प्रकृति के प्रति श्रद्धा की सांस्कृतिक भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि सहिष्णुता, एकत्व और समन्वय भारतीय परंपरा की धरोहर हैं। उन्होंने सभी से करुणा, सत्य, अनुशासन, देशभक्ति और मानवता जैसे मूल्यों को विज्ञान और तकनीक के साथ अपनाने का आह्वान किया।
राज्यपाल थावरचंद गहलोत Thawar Chand Gehlot ने कहा कि आज के तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी समय में भारतीय ज्ञान परंपरा संयम, संतुलन और सहअस्तित्व का मार्ग दिखाती है। वैश्वीकरण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों के बीच भारतीय नैतिक व मानवीय मूल्य आज भी पथप्रदर्शक हैं।
वे सोमवार को सेंट पॉल्स कॉलेज के भाषा विभाग की ओर से "समकालीन संदर्भ में भारतीय ज्ञान प्रणाली का महत्व" विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के बाद संबोधित कर रहे थे।यह सम्मेलन केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार तथा कर्नाटक स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज हिंदी प्रोफेसर्स एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
राज्यपाल गेहलोत ने वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, बौद्ध-जैन ग्रंथ, पाणिनि व्याकरण, चरक-सुश्रुत संहिता, नाट्यशास्त्र, योग और ध्यान जैसी परंपराओं को मानवता के लिए अमूल्य बताया। साथ ही नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे प्राचीन शिक्षा केंद्रों की वैश्विक महिमा का स्मरण कराया।उन्होंने कहा कि परंपरा और नवाचार के संतुलित संगम से ही आधुनिक सामाजिक, तकनीकी और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान संभव है। योग और आयुर्वेद जैसी भारतीय पद्धतियों को ज्ञान-परंपरा की ताकत बताया।
राज्यपाल गहलोत ने भारतीय पर्यावरण चिंतन और प्रकृति के प्रति श्रद्धा की सांस्कृतिक भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि सहिष्णुता, एकत्व और समन्वय भारतीय परंपरा की धरोहर हैं। उन्होंने सभी से करुणा, सत्य, अनुशासन, देशभक्ति और मानवता जैसे मूल्यों को विज्ञान और तकनीक के साथ अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनर्जीवन की ऐतिहासिक पहल बताया।