Anta Assembly By-election: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव पूरे प्रदेश के लिए सियासी चर्चा का विषय बना हुआ है।
Anta Assembly By-election: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव पूरे प्रदेश के लिए सियासी चर्चा का विषय बना हुआ है। बीजेपी ने इस सीट के लिए मोरपाल सुमन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जिसके पीछे सामुदायिक समीकरण, स्थानीय नेतृत्व की ताकत और पार्टी की रणनीतिक है। इस टिकट की घोषणा के बाद सियासी गलियारों में हलचल मची हुई है।
वहीं, इस टिकट के बाद कई सवाल भी उठ रहे हैं, आखिर बीजेपी ने मोरपाल सुमन पर ही दांव क्यों लगाया? इस फैसले की अंदरूनी कहानी क्या है?
अंता उपचुनाव के लिए उम्मीदवार चयन से पहले बीजेपी के भीतर काफी मंथन हुआ। इस सीट पर कई दिग्गजों की नजर थी, जिनमें पूर्व मंत्री प्रभु लाल सैनी और स्थानीय नेता नंदलाल सुमन प्रमुख थे। प्रभु लाल सैनी, जो पहले अंता से विधायक रह चुके हैं, अपने अनुभव और प्रशासनिक क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
उनकी हालिया मुलाकात पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ चर्चा का विषय बनी। कई लोगों ने इसे पुराने सियासी रिश्तों को पुनर्जनन की कोशिश के रूप में देखा। वहीं, नंदलाल सुमन ने भी राजे से मुलाकात कर अपनी दावेदारी को मजबूत करने की कोशिश की थी।
इसके अलावा, उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा और कानून मंत्री जोगराम पटेल ने भी राजे के साथ बैठकें कीं। इन बैठकों का मकसद पार्टी के भीतर संभावित उम्मीदवारों पर सहमति बनाना और अंता के लिए रणनीति तय करना था। लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय समीकरणों को प्राथमिकता देने के मूड में था। यही वजह रही कि अंततः मोरपाल सुमन को टिकट दिया गया।
54 वर्षीय मोरपाल सुमन बारां जिले के स्थानीय नेता हैं, जिनकी क्षेत्र में गहरी पैठ है। उनकी स्वच्छ छवि, सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लंबा जुड़ाव उनकी मजबूती है। सुमन वर्तमान में बारां के प्रधान हैं और उनकी पत्नी नटी बाई सरपंच के पद पर हैं। बीजेपी का मानना है कि सुमन का स्थानीय होना और समुदाय के बीच उनकी साख इस उपचुनाव में निर्णायक साबित होगी।
अंता का मतदाता हमेशा से स्थानीय नेतृत्व को तरजीह देता आया है। ऐसे में, सुमन का चयन बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा है, जो स्थानीय भावनाओं और सामाजिक समीकरणों को प्राथमिकता देती है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने मोरपाल सुमन के चयन को जमीनी हकीकत पर आधारित बताया है। उन्होंने दावा किया कि पार्टी ने प्रत्येक बूथ पर सर्वे कराया, कार्यकर्ताओं की राय ली और केंद्रीय नेतृत्व ने भी अपने स्तर पर विश्लेषण किया। राठौड़ के मुताबिक मोरपाल सुमन की जीत पक्की है। हमने हर बूथ का सर्वे किया है। केंद्रीय संसदीय बोर्ड ने सभी पहलुओं को जांचने के बाद यह फैसला लिया है। अंता की जनता सुमन को पूर्ण समर्थन देगी।
पार्टी ने न केवल स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा जताया, बल्कि मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए बूथ-स्तरीय सर्वे और कार्यकर्ताओं की राय को भी आधार बनाया।
अंता उपचुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है। कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया को मैदान में उतारा है, जो क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं। इसके अलावा, नरेश मीणा के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरने से वोटों का बंटवारा एक अहम फैक्टर बन सकता है। बीजेपी को उम्मीद है कि सुमन की स्थानीय छवि और पार्टी का संगठनात्मक नेटवर्क उसे बढ़त दिलाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अंता का उपचुनाव केवल एक सीट का मामला नहीं है, बल्कि यह राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच भविष्य की सियासी जंग भी है।
मोरपाल सुमन के चयन के पीछे बीजेपी की अंदरूनी सियासत भी साफ नजर आती है। प्रभु लाल सैनी जैसे अनुभवी नेता के समर्थकों में इस फैसले से कुछ निराशा जरूर है। सुमन के समर्थकों का मानना है कि यह फैसला पार्टी की दूरदर्शिता को दर्शाता है। वसुंधरा राजे की भूमिका भी इस चयन में अहम रही। राजे का अनुभव और स्थानीय नेताओं के साथ उनके रिश्ते इस उपचुनाव में बीजेपी की मजबूती हैं।