कदंब के पेड़ को भगवान श्रीकृष्ण से भी जोड़ा जाता है। पुराणों के अनुसार यह भगवान कृष्ण का प्रिय वृक्ष है। वे अक्सर इसकी छांव में बांसुरी की तान छेड़ा करते थे। कदम्ब का वानस्पतिक नाम रूबियेसी कदम्बा है। पहले इसे नॉक्लिया कदम्बा के रूप में जाना जाता था। इसे रूबियेसी परिवार से संबंधित पेड़ माना गया है। यह आमतौर पर समूचे भारत में पाया जाता है।
बारिश की फुहारों से खिला कदम्ब, दूर तक फैल रही महक
Happy Krishna Janmashtmi : बारां. कदंब के पेड़ को भगवान श्रीकृष्ण से भी जोड़ा जाता है। पुराणों के अनुसार यह भगवान कृष्ण का प्रिय वृक्ष है। वे अक्सर इसकी छांव में बांसुरी की तान छेड़ा करते थे। कदम्ब का वानस्पतिक नाम रूबियेसी कदम्बा है। पहले इसे नॉक्लिया कदम्बा के रूप में जाना जाता था। इसे रूबियेसी परिवार से संबंधित पेड़ माना गया है। यह आमतौर पर समूचे भारत में पाया जाता है। यह बहुत जल्दी बढ़ता है। इसकी ऊंचाई 20-40 फ़ीट तक होती है। इसके पत्ते महुवा के पत्तों जैसे होते हैं। वर्षा ऋतु में इस पर फूल आते हैं। इसके डंठल पर चक्राकार पीले गुच्छे के रूप में बहुत छोटे सुगंधमय फूल होते हैं। कहा जाता है कि बादलों की गर्जना से इसके फूल अचानक खिल उठते हैं। पीला पराग झडऩे के बाद ये पकने पर लाल हो जाते हैं। इसे ’हरिद्र’ और ’नीप’ भी कहा जाता था। प्राचीनकाल में इनके फूलों में से इत्र निकाला जाता है। औरतें भी इनसे शृंगार करती थी। इसकी पत्ती,छाल,फल समान मात्रा में लेकर काढा पीने से टाइप 2 डायाबिटीज ठीक होता है।
जानिये इस वृक्ष को
कदम्ब एक प्रसिद्ध फूलदार वृक्ष है। कदम्ब के पेड़ ग्रामीण क्षेत्रों में अब ज्यादा पाए जाते हैं। इसके पत्ते बड़े और मोटे होते हैं जिनसे गोंद भी निकलता है। कदम्ब के पेड़ के पत्ते महुए के पत्तों जैसे और फल-फूल नींबू की तरह गोल होते है। फूल खुशबूदार होते हैं। कदम्ब के पेड़ में मई जून तथा जुलाई व अगस्त माह में दो बार फूल खिलते है। वर्षा ऋतु में जब यह फलता है, तब पूरा वृक्ष अपने हल्के पीले रंग के फूलों से भर जाता है। उस समय इसके फूलों की मादक सुगंध से वातावरण महक उठता है।
ब्रज क्षेत्र में मिलती हैं कई प्रजातियां
ब्रज क्षेत्र में इसकी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें श्वेत, पीत लाल और द्रोण जाति के कदंब हैं। साधारणत: श्वेत व पीत रंग के फूलदार कदंब ही पाए जाते हैं। किन्तु कुमुदवन की कदंबखंडी में लाल रंग के फूल वाले कदंब भी पाए जाते हंैं। श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब हैं, जिनमें प्राकृतिक रुप से दोनों की तरह मुड़े हुए पत्ते निकलते हैं। इन्हें द्रोण कदंब कहा जाता है। गोवर्धन क्षेत्र में एक नए प्रकार का कदंब भी बहुत बड़ी संख्या में है।
राधा-कृष्ण से जुड़ाव
राधा-कृष्ण की अनेक लीलाएं इसी वृक्ष के सुगन्धित वातावरण में हुई थीं। मध्यकाल में ब्रज के लीला स्थलों के उपवन कदंबखंडी कहलाते थे। कदम्ब की कई प्रजातियां हैं। जैसे राजकदम्ब, धूलिकदम्ब, कदम्बिका आदि। कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, ते•ाी से बढऩ़े वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में पाया जाता है। इस पेड़ के फूल तथा पत्ते व गोंद आयुर्वेदिक उपयोग में काम आते हैं।