रुहेलखंड विश्वविद्यालय प्रशासन की ढिलाई के बीच स्नातक और स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर के परीक्षा फार्म भरने की तिथि एक बार फिर बढ़ा दी गई है। अब संबद्ध महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएं 31 दिसंबर तक और विश्वविद्यालय परिसर के विद्यार्थी 24 दिसंबर तक समर्थ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे।
बरेली। रुहेलखंड विश्वविद्यालय प्रशासन की ढिलाई के बीच स्नातक और स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर के परीक्षा फार्म भरने की तिथि एक बार फिर बढ़ा दी गई है। अब संबद्ध महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएं 31 दिसंबर तक और विश्वविद्यालय परिसर के विद्यार्थी 24 दिसंबर तक समर्थ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। पहले यह अंतिम तिथि 22 दिसंबर तय थी, लेकिन बड़ी संख्या में छात्र फार्म नहीं भर पाए, जिससे विवि को झुकना पड़ा।
परीक्षा नियंत्रक के अनुसार, संबद्ध कॉलेजों के स्नातक व स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर की मुख्य परीक्षा के फार्म समर्थ पोर्टल के जरिए भरे जा रहे हैं। कॉलेजों को 1 जनवरी तक फार्म जमा करने होंगे, जबकि 2 जनवरी तक ऑनलाइन सत्यापन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। आवेदन पत्र विवि की वेबसाइट mjpru.samarth.edu.in पर उपलब्ध हैं। अनुदानित महाविद्यालयों में स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत छात्रों से 500 रुपये विकास शुल्क वसूला जाएगा। यह राशि एकमुश्त ड्राफ्ट के माध्यम से विश्वविद्यालय में जमा करनी होगी, जिससे छात्रों और कॉलेजों पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव बढ़ गया है।
विश्वविद्यालय परिसर में शैक्षणिक सत्र 2026 के स्नातक व स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर की मुख्य परीक्षा के फार्म 12 दिसंबर से भरे जा रहे हैं। अब इन्हें 24 दिसंबर तक भरा जा सकेगा, जबकि विभागों में फार्म जमा करने की अंतिम तिथि 26 जनवरी तय की गई है। शोध प्रवेश परीक्षा (आरईटी) 11 जनवरी को बरेली, लखनऊ और गाजियाबाद के परीक्षा केंद्रों पर आयोजित होगी। शोध निदेशालय के निदेशक प्रो. आलोक श्रीवास्तव ने अभ्यर्थियों को सलाह दी है कि वे नियमित रूप से शोध निदेशालय की वेबसाइट www.mjprudor.ac.in पर अपडेट देखते रहें।
सबसे गंभीर समस्या स्नातक प्रथम सेमेस्टर में विषय परिवर्तन को लेकर सामने आई है। प्रवेश के समय चुने गए मेजर, माइनर और वोकेशनल विषयों को कई छात्रों ने फार्म भरते समय साइबर कैफे के माध्यम से अपने स्तर पर बदल दिया। बरेली कॉलेज द्वारा प्रवेश निरस्त करने का नोटिस जारी होते ही छात्र समाधान के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हैं। विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा सीधे छात्रों को भुगतना पड़ रहा है, जिससे पूरे परीक्षा तंत्र पर सवाल खड़े हो गए हैं।