CG Accident: यह कहानी सिर्फ एक सड़क हादसे की नहीं, यह एक ऐसी मां की कहानी है, जो हर शाम दरवाजे पर खड़ी होकर उस कदमों की आहट ढूंढती है, जो अब कभी नहीं आएगी...
CG Accident: शहर की कोमल धनेसर की बारहवीं में पढ़ने वाली बेटी गुरनाम कौर जो घर का गर्व थी, सपनों का आकाश थी, लक्ष्य और लगन की मूर्ति थी…अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराती है। ( CG News ) कोमल कहती है… मैं ड्यूटी से घर लौटती हूं तो बस इतने भर की उम्मीद रहती है कि दरवाजा खुलेगा और मेरी बिटिया ‘मम्मा’ कहकर मुझसे लिपट जाएगी। उसकी आवाज़ अभी भी मेरे कानों में है, पर वह अब सिर्फ यादों में है।
भिलाई नगर सेक्टर-2 की गुरनाम पढ़ाई में बेहद तेज थी। सपना था विदेश में पढ़ाई, बड़ी नौकरी, परिवार का नाम ऊंचा करना। स्कूल में हाउस कैप्टन, कोचिंग में सबसे आगे और घर में सबसे प्रिय। पर 10 जुलाई 2024, दोपहर का वह समय। आज भी परिवार के लिए एक न बुझने वाला अंधेरा है। स्कूल में फोटो सेशन था। गुरनाम हमेशा की तरह स्कूटी से निकली। हेलमेट पहना हुआ था। स्पीड सीमा में थी, लेकिन दूसरों की लापरवाही अक्सर सबसे समझदार लोगों को भी मार देती है। जेपी चौक के पास सामने से आ रही एक तेज रफ्तार कार ने उसे उछालकर दूर फेंक दिया। राहगीरों ने उसे अस्पताल पहुंचाया। कई दिनों तक वेंटिलेटर पर संघर्ष चला, लेकिन आखिर में उसकी सांसें लौटकर नहीं आईं।
कोमल कहती हैं, मैं उसके कमरे में जाती हूं। अलमारी खोलती हूं। लगता है जैसे वह अभी आएगी और कहेगी ‘मम्मा, ये मत छूना, मैंने सेट किया है।’ उसके कपड़े, किताबें, उसकी फाइलें, स्कूटी की चाबी और उसका गिटार, सब वैसा ही रखा है। जैसे वह बस कुछ देर के लिए गई हो।
यह कहानी सिर्फ एक हादसे की नहीं, एक चेतावनी है जिसे हम अनदेखा कर देते हैं। गुरनाम की मौत ने एक मां को उम्रभर का घाव दिया है। एक परिवार की रोशनी बुझ गई है। एक समाज के लिए यह याद है कि सड़क सुरक्षा कोई औपचारिकता नहीं, जिंदगी और मौत के बीच खड़ी एक पतली रेखा है।
मेरी बेटी बहुत समझदार थी, बहुत संभलकर चलती थी। उसने नियम नहीं तोड़े। फिर भी सड़क ने उसे माफ नहीं किया।
बस यही तीन शब्द गूंजते हैं
कोमल की आवाज टूटती है, काश उस ड्राइवर ने तेज नहीं चलाया होता।
काश उसने थोड़ा पहले ब्रेक लगा दी होती। काश मेरी बेटी घर लौट आई होती।
ये काश सिर्फ कोमल के नहीं हजारों परिवारों के हैं। जिनकी बेटियां, बेटे, पिता, मांएं हर साल सड़क पर दम तोड़ देते हैं। कभी किसी की गलती से, कभी अपनी ही लापरवाही से। पर दर्द हर बार पूरा का पूरा घर उठाता है।