गांव-गांव जाकर दी नियंत्रण की जानकारी, किसानों को जैविक व रासायनिक उपाय बताए
भीलवाड़ा जिले में सरसों की फसल में मोयला कीट का प्रकोप नजर आने पर किसानों की चिंता बढ़ गई है। वहीं कृषि विभाग की टीम ने पीथास, अमरगढ़, लसाडिया, बागोर, चांदरास, बेमाली, करेड़ा, मेवासा, सेंडूदा सहित आसपास के गांवों का दौरा कर सरसों की फसल में मोयला कीट के नियंत्रण की जानकारी किसानों को दी। खेतों के भ्रमण के दौरान कुछ स्थानों पर सरसों की फसल में आंशिक रूप से मोयला का प्रकोप पाया गया। कृषि अनुसंधान अधिकारी जीतराम चौधरी ने बताया कि मोयला के अधिक प्रकोप से सरसों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं, पीली पड़ जाती हैं और धीरे-धीरे सूख जाती हैं। समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।
उन्होंने किसानों को सलाह दी कि प्रारंभिक अवस्था में जैविक एवं घरेलू उपाय अपनाएं। इसके तहत नीम तेल 3 से 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में थोड़ा साबुन मिलाकर छिड़काव करें। यदि मोयला का प्रकोप अधिक हो जाए तो रासायनिक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 3 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव सुबह या शाम के समय करें, जब हवा की गति कम हो।
कृषि अधिकारी कजोड़मल गुर्जर ने किसानों को अधिक यूरिया के प्रयोग से बचने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि अधिक नाइट्रोजन से मोयला का प्रकोप तेजी से बढ़ता है। साथ ही संक्रमित टहनियों को काटकर नष्ट करने तथा आवश्यकता पड़ने पर 7 से 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करने की भी सलाह दी। उन्होंने बताया कि मोयला लगभग 2 मिलीमीटर लंबा, अंडाकार आकार का सलेटी या जैतूनी-हरे रंग का कीट होता है, जो तेजी से प्रजनन कर पौधों के कोमल भागों से रस चूसता है। इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और उपज प्रभावित होती है।
सहायक कृषि अधिकारी रतनलाल शर्मा ने मोयला के जीवन चक्र की जानकारी देते हुए बताया कि इसका प्रकोप प्रारंभ में खेत की मेड़ों पर दिखाई देता है। प्रारंभिक अवस्था में ही कीटनाशी पाउडर या दवा का प्रयोग कर इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इस अवसर पर तेजपाल सोनी, सोहनलाल बलाई, सुखदेव गुर्जर, गजानंद, नारायण लाल सहित अनेक किसान मौजूद रहे।