CAG report: मध्यप्रदेश में विभागों की बजट लापरवाही से पांच साल में 5442 करोड़ रुपए बिना उपयोग के लैप्स हो गए। यह राशि समय पर सरेंडर होती तो कई विकास कार्य हो सकते थे।
CAG report: प्रदेश में कई विकास कार्यों के लिए पर्याप्त राशि समय पर इसलिए उपलब्ध नहीं हो पाती, क्योंकि विभाग आवंटित बजट में से बची राशि समय पर सरेंडर नहीं कर रहे। नतीजतन यह राशि बिना उपयोग के लैप्स हो जाती है। यदि जानकारी समय पर वित्त विभाग को दी जाए तो जरुरत के अनुसार अन्य विकास कार्यों में उपयोग किया जा सकता है।
मध्यप्रदेश में बीते पांच साल में 5442 करोड़ रुपए लैप्स हो चुके हैं। इससे मेट्रो का एक रूट तैयार हो सकता था या फिर छोटे-बड़े लगभग 50 ओवरब्रिज भी बनाए जा सकते थे। चार साल तक यह राशि बढ़ती गई, लेकिन पिछले साल थोड़ी कमी आई है। यह स्थिति कमजोर बजट प्रबंधन को दर्शाती है। 2023-24 में ही 1510 करोड़ रुपए लैप्स (mp budget lapse) हो गए, जबकि लोक निर्माण, नगरीय विकास जैसे विभाग विकास कार्यों के लिए बजट के लिए तरसते रहे।
यह खुलासा विधानसभा में पेश कैग की रिपोर्ट में हुआ है। बताया गया है कि बजट नियमावली के अनुसार प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए व्यय में प्रत्याशित बचतों का विवरण बजट नियंत्रण अधिकारी की ओर से 15 जनवरी तक वित्त विभाग को देना होता है। इससे वित्त विभाग अनुदान की अन्य मांगों के लिए बजट का आवंटन करता है, लेकिन 2019 से 2024 के बीच विभिन्न विभागों ने 5,450 करोड़ की कुल बचत में से केवल 7.99 करोड़ ही सरेंडर किया। इस प्रकार 5,442 करोड़ लैप्स हो गए। (mp budget lapse)
शासन को अपने बजट अनुमानों में अधिक यथार्थवादी होना चाहिए। बचतों और आधिक्य व्यय को कम करने के लिएकुशल नियंत्रण तंत्र विकसित करना चाहिए। विधानसभा द्वारा अनुमोदित अनुदान से अधिक व्यय विधानसभा की इच्छा का उल्लंघन है। इसलिए इसे गंभीरता से लेने और जल्द से जल्द नियमितकरने की जरुरत है। (mp budget lapse)
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट (CAG report) में यह भी खुलासा हुआ है कि 1391 प्रकरण विभागीय और आपराधिक जांच के लिए लंबित हैं। ये 20.79 करोड़ रुपए के हैं। कैग ने अपनी अनुशंसा में यह भी कहा है कि हानियों और चोरियों से जुड़े इन लंबित प्रकरणों को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। (mp budget lapse)
कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे कुल 3157 प्रकरण थे, जो 40.02 करोड़ रुपए के थे। इनमें से 1693 मामलों की जांच शुरु तो हुई, लेकिन पूरी नहीं हो पाई। जांच पूरी नहीं होने वाले प्रकरण 17.85 करोड़ रुपए के हैं, जबकि 63 प्रकरणों की जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन इन मामलों वसूली होना अभी बाकी है।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के जलप्रदाय गृहों की स्थापना और संधारण, पाइपों द्वारा ग्रामीण जल प्रदाय योजना, जल जीवन मिशन, गांवों में पेयजल प्रदाय योजना, नगरीय जल प्रदा योजना, ड्रिलिंग रिंग्स का ऑपरेशन सहित आठ योजनाओं में बीते चार साल से लगातार आवंटित बजट खर्च नहीं हो पा रहा। 4 से लेकर 51 करोड़ तक बच रहे। रिपोर्ट में इसे अपर्याप्त निगरानी का संकेत बताया गया है। पिछले वर्षों के रुझान पर विचार किए बिना बजट आवंटन किया गया। इससे लगातार रकम बची। हकीकत में देखा जाए तो गांवों और शहरों में जलप्रदाय व्यवस्था में खर्च की काफी गुंजाइश है।