Electricity will become expensive: मध्य प्रदेश की बिजली कंपनियों ने दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है, जिससे अप्रेल से नई दरें लागू होंगी। इस साल भी बिजली सब्सिडी में करीब 4000 करोड़ रूपए की वृद्धि होने की संभावना है।
Electricity will become expensive: प्रदेश में बिजली सब्सिडी कम करने के प्रयास बीते पांच साल से चल रहे हैं, लेकिन यह घटने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है। बिजली कंपनियों ने दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है, जिससे अप्रेल से नई दरें लागू होने के बाद आम जनता पर बढ़े बोझ का असर सरकार पर सब्सिडी के रूप में पड़ेगा। इस साल भी बिजली सब्सिडी में करीब 4000 करोड़ रूपए की वृद्धि होने की संभावना है, जिसके लिए 12 मार्च को पेश होने वाले बजट में प्रावधान करना होगा।
प्रदेश में बिजली सब्सिडी की समस्या को हल करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास हुए, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। मंत्रियों की हाईपावर कमेटी तक बनाई गई, लेकिन न तो सब्सिडी घटाने का रास्ता खोजा जा सका और न ही बिजली कंपनियों की गड़बड़ियों पर लगाम लगाई गई।
बिजली सब्सिडी को हमेशा से चुनावी एजेंडे से जोड़कर देखा जाता है। इसका लाभ लेने वाले 80 लाख उपभोक्ताओं को वोटबैंक के रूप में देखा जाता है, इसलिए सरकार महंगी बिजली का बोझ सीधे जनता पर डालने से बचती रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बिजली की ऊंची कीमतें घाटे को दिखाकर तय की जाती हैं, जबकि असल में यह घाटा आंकड़ों का खेल है। अगर बिजली बिल को प्रति यूनिट के हिसाब से सरलीकृत कर दिया जाए और चोरी पर सख्ती से नियंत्रण किया जाए, तो सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से कम किया जा सकता है।
वर्तमान में प्रदेश में सरकार सालाना 26,500 करोड़ रूपए की बिजली सब्सिडी देती है। इस राशि में सौ यूनिट बिजली सौ रुपये में देने जैसी योजनाएं शामिल हैं। बिजली की औसत कीमत छह रुपये प्रति यूनिट है, जबकि अन्य चार्ज जोड़कर यह और बढ़ जाती है। इस अंतर को सरकार सब्सिडी के रूप में भरती है।
मंत्रियों के स्तर पर यह चर्चा होती रही है कि सब्सिडी की राशि कंपनियों को देने के बजाय सीधे उपभोक्ताओं को दी जाए। इससे पहले पूरा बिजली बिल वसूला जाए और बाद में सब्सिडी के रूप में राहत दी जाए। इससे सरकार को राजनीतिक रूप से भी फायदा होगा। हालांकि, यह प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।
बिजली सब्सिडी का मुद्दा राजनीतिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर चुनौती बना हुआ है। सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिना जनता को नाराज किए सब्सिडी को कैसे कम किया जाए। आगामी बजट में इस पर क्या निर्णय लिए जाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।