Bhopal gas tragedy - चार दशक पुराना भोपाल गैस कांड अभी तक सुर्खियों में बना हुआ है। यहां की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की जहरीली राख के निष्पादन पर कई महीनों से बवाल मच रहा है।
Bhopal gas tragedy - चार दशक पुराना भोपाल गैस कांड अभी तक सुर्खियों में बना हुआ है। यहां की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की जहरीली राख के निष्पादन पर कई महीनों से बवाल मच रहा है। इस मामले में अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। यूनियन कार्बाइड की जहरीली राख का पीथमपुर में निष्पादन किया जाना था लेकिन कोर्ट से इससे इंकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इसके लिए वैकल्पिक स्थान तलाशने का आदेश दिया है। पीथमपुर बचाव समिति ने फैसले का स्वागत करते हुए इसे जनता की जीत करार दिया। मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी।
भोपाल गैस कांड में निकले 358 टन जहरीले कचरे से बनी 899 टन राख का निष्पादन किया जाना है। धार के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में TSDF प्लांट में इस कचरे को जलाकर राख बनाई गई थी। हाईकोर्ट ने इसके लिए मानव बस्ती, पेड़-पौधों और जलस्रोतों से हटकर कोई जगह ढूंढने के आदेश दिए हैं।
यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा पीथमपुर लाकर जलाया गया था। इससे करीब 900 टन राख बनी। राख को बंकर में सुरक्षित रखा गया है। पीथमपुर बचाव समिति का कहना है कि इसमें मरकरी यानि पारा जैसे जहरीले तत्व हैं। राख का पीथमपुर में निष्पादन का विरोध करते हुए हाईकोर्ट में याचिका लगाई। इसमें कहा गया कि राख से कैंसर होने का खतरा है। भूकंप आदि की स्थिति में जहरीली राख से इंदौर, धार और मऊ का इलाका बुरी तरह प्रदूषित हो सकता है।
राज्य सरकार ने अपना जवाब पेश किया लेकिन कोर्ट ने सरकार के कदमों को अपर्याप्त बताया। हाईकोर्ट ने याचिका में दिए तर्कों को स्वीकार करते हुए सरकार को राख के निष्पादन के लिए वैकल्पिक स्थल ढूंढने का कड़ा निर्देश दिया है।
याचिका में यूका के कचरे से बनी राख में पारे की मात्रा तय सीमा से अधिक होने की बात सामने आई। इससे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। याचिका में कहा गया कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में बंकर टूटने पर राख के बिखरने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।