सागर संभाग के पांच जिलों में ही प्रदेश के आधे मरीज केंद्रित हैं। छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, सागर और दतिया में सालाना विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि बीमारी के फैलाव को रोका जा सके।
प्रदेश में फाइलेरिया की स्थिति नियंत्रित होती दिख रही है, लेकिन बुंदेलखंड के जिलों में यह बीमारी अभी भी गंभीर रूप में मौजूद है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कुल 3388 मरीज हैं, जिनमें से 1872 मरीज केवल बुंदेलखंड के जिलों में पाए गए हैं। सागर संभाग के पांच जिलों में ही प्रदेश के आधे मरीज केंद्रित हैं। छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, सागर और दतिया में सालाना विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि बीमारी के फैलाव को रोका जा सके। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी और मच्छर जनित संक्रमण के कारण फाइलेरिया पर पूर्ण अंकुश लगाना अभी भी चुनौती बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग ने क्यूलेक्स मच्छर के कारण होने वाली लिम्फैटिक फाइलेरिया और हाइड्रोशील बीमारी के आधार पर आंकड़े तैयार किए हैं। प्रदेश के 12 सबसे प्रभावित जिलों में 6 जिले बुंदेलखंड के हैं।
छतरपुर- 614 सक्रिय केस
पन्ना- 660 केस
टीकमगढ़- 232 केस
दमोह- 147 केस
दतिया- 187 केस
सागर- 30 केस
पिछले दो वर्षों में छतरपुर जिले में फाइलेरिया के मरीजों की संख्या घटकर 932 से 614 रह गई है। यानी 318 मरीजों की संख्या कम हुई है। यह दर्शाता है कि अभियान ने नए मरीजों के बढ़ाव को थामा है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी, गंदे और रुके पानी में मच्छर का प्रजनन, और संक्रमण के लक्षण 6-8 साल तक छुपे रहने की वजह से बीमारी का पूर्ण नियंत्रण अभी दूर की कौड़ी है।
डॉ. सोनल के अनुसार फाइलेरिया और हाइड्रोशील बीमारी के लक्षण अक्सर छह साल बाद ही स्पष्ट होते हैं। पैरों में सूजन और गठान जैसी समस्याएं तब उभरती हैं, जिससे पैर हाथी पांव जैसी स्थिति में बदल जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे हाथी पांव के नाम से जाना जाता है। दवाइयों के जरिए बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन इसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता।
छतरपुर जिले में फाइलेरिया केस का विवरण
क्षेत्र मरीजों की संख्या
नौगांव 13
ईशानगर 114
छतरपुर शहर 87
बड़ामलहरा 47
बकस्वाहा 49
राजनगर 67
लवकुशनगर 81
गौरिहार 156
कुल 614
सीएमएचओ डॉ. आरपी गुप्ता ने बताया कि जिले में फाइलेरिया नियंत्रण के लिए दवा वितरण, सर्वे और मच्छर नियंत्रण गतिविधियां नियमित रूप से संचालित की जा रही हैं, जिसके चलते दो वर्षों में सक्रिय मरीजों की संख्या कम हुई है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने और जलभराव रोकने की अपील करते हुए कहा कि बीमारी को नियंत्रित रखने में नागरिकों का सहयोग सबसे महत्वपूर्ण है।