इन दिनों भगवान की मूर्तियों को चिलचिलाती धूप और तेज गर्म हवाओं से बचाने के लिए एसी, कूलर और पंखों की व्यवस्था की गई है। मान्यता है कि भगवान सांसारिक ताप और ठंड से परे होते हैं, लेकिन भक्तों की भावना यह मानती है कि सेवा भाव से किए गए हर प्रयास का फल अवश्य मिलता है।
छतरपुर. भीषण गर्मी से इंसान ही नहीं, भगवान को भी राहत देने के प्रयास छतरपुर जिले के श्रद्धालुओं द्वारा किए जा रहे हैं। शहर के प्रमुख मंदिरों में इन दिनों भगवान की मूर्तियों को चिलचिलाती धूप और तेज गर्म हवाओं से बचाने के लिए एसी, कूलर और पंखों की व्यवस्था की गई है। मान्यता है कि भगवान सांसारिक ताप और ठंड से परे होते हैं, लेकिन भक्तों की भावना यह मानती है कि सेवा भाव से किए गए हर प्रयास का फल अवश्य मिलता है। इसी भावना के तहत भक्त अपने आराध्य को भी इस झुलसाती गर्मी से राहत देने में जुटे हैं।
कूडऩ ताल मंदिर के पुजारी पप्पू चौबे ने बताया कि इन दिनों मंदिर में दिन के समय श्रद्धालुओं की संख्या काफी घट गई है। लोग सुबह 6 बजे से 11 बजे और शाम को 6 बजे से 10 बजे के बीच ही पूजा के लिए आते हैं। दिनभर मंदिर परिसर लगभग सुनसान रहता है। लेकिन भगवान की सेवा में कोई कमी न हो, इसके लिए उनके कक्ष में एसी लगाए गए हैं, ताकि वातावरण शीतल बना रहे।
इसी तरह प्रेम मंदिर के पुजारी राजेंद्र महाराज ने बताया कि वर्तमान में तापमान अत्यधिक है और इससे भगवान की प्रतिमाओं को गर्मी से बचाने के लिए एसी, कूलर और पंखों की व्यवस्था की गई है। संकट मोचन तालाब के पास स्थित धनुषधारी मंदिर में भी भक्तों द्वारा भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान जी के लिए एसी लगवाए गए हैं। उनका मानना है कि जैसे आम जनमानस गर्मी से राहत चाहता है, वैसे ही हमारे आराध्य भी सेवा भाव से इस शीतलता के अधिकारी हैं।
मंदिरों की दिनचर्या भी गर्मी के अनुसार बदल दी गई है। हनुमान मंदिर ट्रस्ट के सचिव नीरज भार्गव ने बताया कि गर्मियों में भगवान की आरती और भोग का समय मौसम के अनुकूल कर दिया गया है। सुबह 6.30 बजे मंगला आरती की जाती है, दोपहर 12 बजे तक दर्शन खुले रहते हैं, इसके बाद 4 बजे तक पट बंद हो जाते हैं। शाम 7.30 बजे संध्या आरती और रात 8.30 बजे शयन आरती होती है।
गर्मी के मौसम में भोग में भी बदलाव किया गया है। सुबह के समय भगवान को दही-चावल और ठंडाई जैसे शीतल पेय अर्पित किए जा रहे हैं, जबकि रात को खीर का भोग लगाया जाता है। वहीं सर्दियों में भगवान को तेल के लड्डू, मेवे और गरिष्ठ पकवान अर्पित किए जाते हैं।