भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई है, जो न केवल भारतीय मानक (1.0 मिग्रा/लीटर) से अधिक है बल्कि वैश्विक सुरक्षित स्तर (0.5 मिग्रा/लीटर) से तीन गुना है।
जिले के भूजल में फ्लोराइड की बढ़ती मात्रा अब महज एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। सेन्ट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि जिले के जलस्तर के गिरने के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी बिगड़ रही है। भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई है, जो न केवल भारतीय मानक (1.0 मिग्रा/लीटर) से अधिक है बल्कि वैश्विक सुरक्षित स्तर (0.5 मिग्रा/लीटर) से तीन गुना है।
विशेषज्ञों के अनुसार फ्लोराइड एक ऐसा रसायन है जो बिना रंग और गंध के पानी में घुल जाता है। इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके घातक असर दिखने लगते हैं। ग्रामीण इलाकों में यह असर साफ नजर आने लगा है। जहां लोग हैंडपंप और कुओं का पानी पीते हैं, वहां फ्लोरोसिस नामक बीमारी तेजी से फैल रही है। यह बीमारी हड्डियों को कमजोर कर देती है, रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो जाती है, और दांत पीले व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. लखन तिवारी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अकसर हड्डियों के दर्द को गठिया मानकर घरेलू इलाज करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह फ्लोरोसिस का लक्षण हो सकता है। यह बीमारी धीरे-धीरे शरीर को तोड़ देती है और कई मामलों में विकलांगता तक पहुंचा देती है।
फ्लोराइड युक्त पानी केवल पीने से ही नहीं, बल्कि फसलों के जरिए भी शरीर में पहुंच रहा है। खेतों में बोरवेल के पानी से सिंचाई की जा रही है, लेकिन इस पानी की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं होती। ऐसे में फल, सब्जियां और अनाज भी फ्लोराइड से प्रभावित हो रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह साइलेंट प्वाइजनिंग है, जो भविष्य की पीढिय़ों को भी प्रभावित कर सकती है।
हालांकि फ्लोराइड को पहचानना मुश्किल है, लेकिन घर पर ही कुछ संकेतों से इसकी उपस्थिति पहचानी जा सकती है। जैसे कि पीने के पानी का रंग यदि हल्का पीला हो या पीने पर बार-बार प्यास लगती हो, कब्ज और गैस की समस्या बनी रहती हो, तो यह संकेत हो सकते हैं कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। इसके लिए बाजार में फ्लोराइड टेस्ट किट भी उपलब्ध है, जिससे लोग खुद जांच कर सकते हैं।
जिला प्रशासन ने इस संकट को देखते हुए नल जल परियोजनाओं को गति दी है ताकि भूजल पर निर्भरता कम हो और लोगों को ट्रीटमेंट प्लांट से साफ और सुरक्षित पानी मिल सके। विशेषज्ञों की सलाह है कि जिन इलाकों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, वहां आरओ या वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। आंवला, नारंगी और अंगूर जैसे विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करें, क्योंकि ये शरीर में फ्लोराइड के असर को कम करते हैं। छतरपुर जिले का भूजल अब केवल घटता संसाधन नहीं बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। इसे केवल प्रशासनिक योजनाओं से नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और व्यक्तिगत सतर्कता से ही मात दी जा सकती है। यदि समय रहते उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में फ्लोरोसिस जैसी बीमारियां आम हो सकती हैं, और पूरा क्षेत्र इस अदृश्य जहर का शिकार बन सकता है।
भूजल का इस्तेमाल सीधे नहीं करना चाहिए। पेज जल परियोजनाओं का पानी बेहतर है। पानी के सैंपल लेकर हम जांच कराते हैं। लोगों को अलर्ट भी करते हैं। पानी की जांच के लिए लोग हमारी लैब भी आ सकते हैं।
संजय कुमरे, ईई. पीएचई