छतरपुर जिले ने पर्यावरण संरक्षण के नए अध्याय का श्रीगणेश किया है। हर मोड़ बरगद अभियान आज न सिर्फ हरी-भरी छांव की उम्मीद जगा रहा है, बल्कि भविष्य की पीढिय़ों के लिए शुद्ध ऑक्सीजन की गारंटी भी दे रहा है।
बुंदेलखंड की पथरीली जमीन, गर्म हवाओं और पानी की किल्लत के बीच छतरपुर जिले ने पर्यावरण संरक्षण के नए अध्याय का श्रीगणेश किया है। हर मोड़ बरगद अभियान आज न सिर्फ हरी-भरी छांव की उम्मीद जगा रहा है, बल्कि भविष्य की पीढिय़ों के लिए शुद्ध ऑक्सीजन की गारंटी भी दे रहा है।
प्रशासन की निगरानी में जिले के 8 ब्लॉकों में अब तक 2615 बरगद के पौधे रोपे गए। गौरिहार ब्लॉक सबसे आगे रहा, जहां 602 स्थानों पर पौधे लगाए गए। वहीं राजनगर में 563, नौगांव और लवकुशनगर में 400-400, बड़ामलहरा में 198, बिजावर में 146, बकस्वाहा में 125 और जिला मुख्यालय छतरपुर में 181 पौधे लगाए गए। हर पौधे को सुरक्षा जाली से ढककर संरक्षित किया गया है, ताकि जानवरों से नुकसान न हो।
बरगद को वैज्ञानिक दृष्टि से ऑक्सीजन का खजाना कहा जाता है।
-एक नया बरगद प्रतिदिन 100 लीटर ऑक्सीजन उत्पन्न करता है।
-100 साल पुराना बरगद रोजाना 200-300 लीटर ऑक्सीजन तक देता है।
- इसकी जड़ें मिट्टी को बांधकर भूक्षरण रोकती हैं और जलस्तर को बनाए रखने में मदद करती हैं।
-बरगद का विशाल छायादार घेरा 5000 से अधिक पक्षियों और जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल बन सकता है।
- इसे प्रकृति का जीवनदाता और भारतीय संस्कृति में कल्पवृक्ष कहा गया है।
बरगद का पेड़ सिर्फ पर्यावरण नहीं बचाता, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी इसका गहरा महत्व है। धार्मिक ग्रंथों में इसे अक्षयवट यानी अमरत्व का प्रतीक कहा गया है। पीपल और नीम की तरह बरगद भी पूजा जाता है। कई जगह इसे विवाह और मांगलिक कार्यों से जोडकऱ परंपरा का हिस्सा बनाया गया है। यही कारण है कि लोग इसे काटने से बचते हैं और सम्मानपूर्वक इसकी रक्षा करते हैं।
उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ. कमलेश अहिरवार बताते हैं कि बरगद के पौधे को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती। एक बार जड़ जम जाए तो यह सैकड़ों साल तक जीवित रह सकता है। मानसून, दिसंबर और फरवरी इसके पौधारोपण के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने हैं। शाम के समय गोबर खाद डालकर लगाए गए पौधे जल्दी जम जाते हैं।
आज दुनिया जिस तरह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, उसमें बरगद जैसे पेड़ हथियार साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हर गांव में 50-100 बरगद लगा दिए जाएं तो वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन पर बड़ी हद तक रोक लगाई जा सकती है।
कलेक्टर पार्थ जैसवाल मानना है कि आने वाले वर्षों में यदि हर पंचायत, हर गांव और हर मोड़ पर बरगद लगाया गया तो जिले का पर्यावरणीय नक्शा बदल जाएगा। न सिर्फ हवा साफ होगी बल्कि गर्मी की तीव्रता में कमी आएगी। मिट्टी और जल स्तर सुरक्षित रहेंगे। बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्र में बरगद का विस्तार सिर्फ एक पौधारोपण अभियान नहीं, बल्कि जीवन रक्षा का आंदोलन है। आने वाली पीढिय़ांं जब छांव में बैठेंगी और खुलकर सांस लेंगी, तब यह बरगद उन्हें याद दिलाएंगे कि कैसे छतरपुर ने ऑक्सीजन और हरियाली का श्रीगणेश किया था।