छिंदवाड़ा

Innovation:इन राखियों ने दी छिंदवाड़ा जिले को नई पहचान, विदेश तक पहुंची

-मुआरकलां और जुड़ेलाढाना के आदिवासी परिवारों से बनवाई राखियां

2 min read
छींद की पत्तियों से राखी बनाते आदिवासी

छिंदवाड़ा जिले की पहचान छींद के पुरातन पेड़ों से है। नई पीढ़ी इसे भूलती जा रही है। इस पहचान को पुनस्र्थापित करने का प्रयास तामिया के पर्यटन प्रेमी पवन श्रीवास्तव ने इस रक्षाबंधन पर्व पर किया है। उन्होंने इस छींद के पेड़ की पत्तियों से न केवल रक्षासूत्र बनवाए, बल्कि इसकी नक्काशी और मार्केटिंग की जिम्मेदारी भी खुद संभाली है। पर्यटन क्षेत्र से पिछले दस साल से काम कर रहे श्रीवास्तव ने छींद की पत्तियों पर चित्रकारी करने का दायित्व तामिया से 10 किमी दूर ग्राम मुआरकलां के गनेश भारती के परिवार और जुन्नारदेव के ग्राम जुड़ेलाढाना के आदिवासी परिवार को सौंपा है। इन दोनों परिवार में 22 सदस्य हैं।
ये लोग छींद की पत्तियों से पिरामिड, फूल, चोकोर जैसी आकृतियों की राखियां बना रहे हैं। फिर इस पर डिजाइन और नक्काशी का काम पवन की पत्नी शिल्पी कर रही हैं। इसके बाद बाजार में मार्केटिंग का जिम्मा पवन के पास है। वे उसे स्थानीय बाजारों में उपलब्ध करा रहे हैं। इस छिंदी की राखी के व्यवसाय से जुड़े पवन इसे एक जनक्रांति मानते हैं। उनके मुताबिक छींद के बड़े वृक्षों के बड़ी संख्या में उपलब्ध होने के कारण छिंदवाड़ा का नाम है। इन वृक्षों के कम होने से छिंदवाड़ा की पहचान खोती जा रही है। इसे पुनस्र्थापित करने का काम इस छींद की राखियों के माध्यम से कर रहे हैं। उनका लक्ष्य रक्षा सूत्र बना रहे प्रत्येक परिवारों को हर साल 25 से 50 हजार रुपए उपलब्ध कराना है।

पहले भी पर्यटकों को छींद की माला, आभूषण

इससे पहले छींद से तामिया-पातालकोट आने वाले पर्यटकों के लिए छींद की माला, आभूषण, चटाई बनवाकर उपलब्ध करा चुके हैं। आगे इसे उनके बीच गिफ्ट ऑफ छिंदवाड़ा के रूप में दिए जाने का लक्ष्य रखा है।

पिछले साल राखियों को ले गए थे विदेश

पिछले साल सोनी कम्प्यूटर्स छिंदवाड़ा के छात्र विदेश यात्रा पर गए थे। इस दौरान उनके साथ छींद की राखियों को भेजा गया था, जहां उन्होंने विदेशी छात्रों की कलाइयों पर इन राखियों को बांधा था। पवन के अनुसार अब इन राखियों को जन-जन तक पहुंचाना है।

Updated on:
12 Aug 2024 05:57 pm
Published on:
12 Aug 2024 05:51 pm
Also Read
View All

अगली खबर