छिंदवाड़ा

‘वन विभाग’ का बड़ा फैसला, अब नहीं पकड़ेंगे लाल मुंह वाले ‘बंदर’

MP News: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में इन दिनों लाल मुंह के बंदरों का आतंक देखने को मिल रहा है।

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MP News: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और जुन्नारदेव समेत पूरे अंचल की बस्तियों में लाल मुंह के बंदर आकर उपद्रव मचा रहे हैं, लेकिन वन विभाग के कर्मचारी अब उसे पकड़ने से मना रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लाल मुंह के बंदरों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 से हटा दिया गया है। वन विभाग अब बंदरों को पकड़ने का खर्च नहीं उठाएगा।

जुन्नारदेव के ग्राम विशाला की पहली पायरी में लाल मुंह के बंदर उत्पात मचा रहे हैं। रहवासियों ने हाल ही में कलेक्टर जनसुनवाई में आकर अपनी व्यथा सुनाई थी। जिसमें ये बंदर आकर ग्रामीणों की छत पर नुकसान पहुंचाते हैं। यहीं नहीं लोगों पर हमला भी कर रहे हैं। इसके अलावा खाद्य साम‌ग्री भी लेकर भाग

प्रभावित हो रही है। दूसरा केस जाते हैं। इससे उनकी दिनचर्या परासिया का है, जहां भी सघन बस्तियों में बंदर आकर उपद्रव करते हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में जगह-जगह बंदरों का प्रभाव देखने को मिलता है। इसी तरह अमरवाड़ा के आगे हर्रई के पास सड़क पर बंदर वाहनों का पीछा करते हैं। इसकी शिकायत आम तौर पर मिलती रही है।

पश्चिम वनमण्डल में आया पत्र

पश्चिम वनमण्डल में एक पत्र अगस्त-सितम्बर में आया था। अधिकारी बता रहे हैं कि अब बंदरों को पकडने का खर्च विभाग नहीं उठाएगा क्योंकि लाल मुंह वाले बंदरों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 से हटा दिया गया है। पहले वन विभाग कार्रवाई करता था, लेकिन लाल मुंह के बंदर को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूचियों से बाहर रखा गया है। इसलिए वन विभाग को उन्हें पकड़ने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

ग्रामीणों का गुस्सा बढ़ा

लाल मुंह के बंदरों के उपद्रव से ग्रामीणों में गुस्सा बढ़ रहा है। उनके अनुसार बिना संसाधनों के इसे बढ़ती हुई समस्या से निपटने के लिए कहा जा रहा है। बंदर फसलों को नष्ट कर रहे हैं। खाना छीन रहे हैं और ग्रामीणों को घायल कर रहे हैं। इसलिए स्थानीय लोग सरकार से हस्तक्षेप कर का आग्रह कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार लाल मुंह वाले बंदरों को रोके।

जुन्नारदेव विशाला के लोग बंदरों से खुद को बचाने मजबूर हैं। बंदर न केवल लोगों पर हमला करते हैं। बल्कि फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ता है। उनके अनुसार सरकार को किसी न किसी तरीके से इस समस्या का हल निकालना होगा।

पश्चिम वनमण्डल के एसडीओ विजेन्द्र खोपरागढ़े ने बताया कि लाल मुंह के बंदरों को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है। इसका पत्र पिछले माह ही आया है। इसके बाद बंदर के साथ सामान्य पशु-पक्षी जैसा व्यवहार किया जाएगा।

Published on:
14 Dec 2025 06:28 pm
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