Akshay Tritiya Importance बैसाख शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीया तिथि बेहद खास होती है। इस दिन खरीदारी का विशेष महत्व होता है। लेकिन यह तिथि धार्मिक रूप से बेहद शुभ और मंगलकारी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन किए कार्य का अक्षय फल मिलता है। साथ ही इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इसका अर्थ है इस दिन नया काम शुरू करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है। इसकी वजह है कि इस तिथि पर ही भगवान विष्णु ने 4 अवतार धारण किए थे। आइये जानते हैं अक्षय तृतीया की पौराणिक कथाएं और महत्व..
अक्षय तृतीया यानी अखातीज का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले शुभ काम और धार्मिक कार्य, दान पुण्य से मिलने वाले फल का कभी क्षय नहीं होता है। इस तिथि का महत्व इससे समझा जा सकता है कि इसी दिन से सतयुग और त्रेता युग की शुरुआत हुई थी। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु ने 4 अवतार धारण किए थे। आइये जानते हैं अक्षय तृतीया के दिन कौन-कौन से अवतार हुए थे और इसका पौराणिक महत्व क्या है…
धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बढ़ गया था। मानवता को संकट से उबारने के लिए वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन भार्गव वंश में भगवान परशुराम के रूप में भगवान श्री हरि विष्णु अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन को भगवान परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं और पूजा पाठ करके व्रत रखते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के चौथे अवतार नर-नारायण का प्राकट्य धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से इसी दिन हुआ था। नर-नारायण के हाथों में हंस, चरणों में चक्र और वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूपी जुड़वां संतों के रूप में अवतार लेकर बद्रीनाथ तीर्थ में तपस्या की थी। इस अवतार का उद्देश्य संसार में सुख और शांति का विस्तार करना था।
इन अवतारों ने उत्तराखंड में बदरीवन और केदारवन में घनघोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इस पर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। लेकिन उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा, बल्कि लोक कल्याण के लिए शिवजी से प्रार्थना की कि वे इस स्थान में पार्थिव शिवलिंग के रूप में हमेशा रहें। इस पर शिवजी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली और आज जिस केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के हम दर्शन करते है, उसी में शिवजी का आज भी वास है। मान्यता है कि नर नारायण पर्वत के रूप में आज भी यहां तपस्या कर रहे हैं।
श्रीहरि के 24 अवतारों में से 16वां अवतार हयग्रीव अवतार है। इससे जुड़ी प्राचीन कथा के अनुसार मधु-कैटभ नाम के दो दैत्य ब्रह्माजी से उनके वेद चुराकर रसातल में ले गए थे। जिससे परेशान होकर ब्रह्मा जी भगवान विष्णु से प्रार्थना की। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन ही हयग्रीव का अवतार लिया और दैत्यों का वध करके ब्रह्माजी को उनके वेद सकुशल लौटाए।