Gayatri Jayanti Jyeshth: माता गायत्री को वेदों की देवी और वेद माता माना जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा से से हर मनोकामना पूरी होती है और इनके आशीर्वाद से भक्त के चारों ओर रक्षा कवच बन जाता है, जिससे कोई भी बुरी शक्ति भक्त का बाल बांका नहीं कर पाती तो आइये जानते हैं कब है गायत्री जयंती, क्या है माता गायत्री का स्वरूप, पूजा विधि और मंत्र ...
Gayatri Jayanti Jyeshtha: मान्यताओं के अनुसार, देवी गायत्री ब्रह्म के सभी अभूतपूर्व गुणों की अभिव्यक्ति हैं। इन्हें हिंदू त्रिमूर्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी गायत्री को सभी देवताओं की माता और देवी सरस्वती, देवी पार्वती, देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। साथ ही समस्त वेदों की देवी और वेद माता के नाम से भी जानते हैं। इन्हीं गायत्री माता की जयंती, गायत्री जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह भी मान्यता है ऋषि विश्वामित्र ने ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन ही गायत्री मंत्र आम जनता को समर्पित किया था, इसलिए इस दिन गायत्री माता की पूजा कर गायत्री जयंती मनाई जाती है। भक्त गायत्री माता की विशेष पूजा-अर्चना करके और गायत्री मंत्र का जाप करके इस पर्व को मनाते हैं। वैसे गायत्री जयंती साल में दो बार मनाई जाती है, विशेष रूप से श्रावण पूर्णिमा (उपाकर्म दिवस के दिन) और ज्येष्ठ शुक्ल दशमी यानी गंगादशहरा के अगले दिन।
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभः 17 जून 2024 को सोमवार सुबह 04:43 बजे
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि समापनः 18 जून 2024 को मंगलवार सुबह 06:24 बजे तक
परिघः 17 जून को रात 09:35 बजे तक
शिवः 18 जून रात 9.39 बजे तक
रवि योगः 17 जून सुबह 05:35 बजे से दोपहर 01:50 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:03 से 04:43 तक।
प्रातः संध्याः सुबह 04:23 से 05:23 बजे तक।
अमृत काल: सुबह 06:44 से 08:31 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:54 से दोपहर 12:50 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:42 से 03:38 बजे तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:20 से 07:40 बजे तक।
सायं संध्या: शाम 07:21 से रात 08:21 बजे तक।
रवि योग: सुबह 05:23 से दोपहर 01:50 तक।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों और अज्ञान की दूर करने वाला है, वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाएं।
माता गायत्री की पूजा से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। जीवन में सकारात्मकता आती है। गायत्री मंत्र को सिद्ध करने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और इनके आशीर्वाद से भक्त के चारों ओर रक्षा कवच बन जाता है, जिससे कोई भी बुरी शक्ति भक्त का बाल बांका नहीं कर पाती। गायत्री मंत्र के जाप से मनुष्य की आध्यत्मिक चेतना का पूर्ण विकास होता हैं। इस मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जप करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।
धर्मग्रंथों के अनुसार मां गायत्री ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का एक विशेष स्वरूप हैं। इसी कारण इन्हें त्रिमूर्ति मानकर ही पूरी श्रद्धा से ध्यान किया जाता है। इनके पांच मुख और दस हाथ बताए जाते हैं। इनके पांच में से चार मुख चारों वेदों के प्रतीक हैं तो देवी मां का पांचवा मुख सर्वशक्तिमान शक्ति होने का संदेश देता है। गीता में देवी मां के दस हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक बताए गए हैं। यह त्रिदेवों की आराध्य भी बताई गईं हैं।