सुमतिनाथ जैन संघ, यलहंका के तत्वावधान में विराजित ज्ञान मुनि ने कहा कि अभिमान ही मानव के कर्मों के बंध का मुख्य कारण है। जब तक अभिमान, मान और ईर्ष्या से दूर नहीं होंगे, तब तक जीवन सफल नहीं होगा। मानव को काल आने पर मिट्टी में मिल जाना है। यह जानते हुए भी मानव […]
सुमतिनाथ जैन संघ, यलहंका के तत्वावधान में विराजित ज्ञान मुनि ने कहा कि अभिमान ही मानव के कर्मों के बंध का मुख्य कारण है। जब तक अभिमान, मान और ईर्ष्या से दूर नहीं होंगे, तब तक जीवन सफल नहीं होगा। मानव को काल आने पर मिट्टी में मिल जाना है। यह जानते हुए भी मानव मान से दूर नहीं हो रहा है। मुनि ने कहा कि अकड़ने वाला पाकर भी गंवा देता है। अभिमान छोड़ कर प्रेम करना सीखें। जब तक मानव में ऐसा व्यवहार नहीं आएगा, उसका कल्याण नहीं होगा। झुकता वही है जिसमें जान होती है। जब तक अकड़ और अभिमान से मानव दूर नहीं होगा उसका जीवन नहीं सुधरेगा। ऐसा कर मानव अपने कर्मों का लगातार बंध करता जा रहा है। जब तक कर्मों का बंध टूटेगा नहीं, तब तक मानव कल्याण संभव नहीं होगा। जीवन का कल्याण झुकने से ही संभव होता है। सरला धोका ने गीतिका प्रस्तुत की। सभा में मल्लेश्वरम महिला मंडल की सदस्यों की उपस्थिति रही। उपाध्यक्ष कांतिलाल हरण ने आभार व्यक्त किया। संचालन महामंत्री मनोहरलाल लुकड़ ने किया।