बेंगलूरु सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम महातीर्थ में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने कहा कि बाल्यावस्था में दीक्षा ग्रहण करना आत्मा के उज्ज्वल भविष्य की सबसे पवित्र शुरुआत माना गया है। जब मन निर्मल, कोमल और प्रभावित होने योग्य होता है, तब धर्म-संस्कार गहरे उतरकर चरित्र को दिव्यता से भर देते हैं। छोटी उम्र में लिया गया संयम […]
बेंगलूरु
सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम महातीर्थ में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने कहा कि बाल्यावस्था में दीक्षा ग्रहण करना आत्मा के उज्ज्वल भविष्य की सबसे पवित्र शुरुआत माना गया है। जब मन निर्मल, कोमल और प्रभावित होने योग्य होता है, तब धर्म-संस्कार गहरे उतरकर चरित्र को दिव्यता से भर देते हैं। छोटी उम्र में लिया गया संयम जीवन को पवित्रता, अनुशासन और स्थिरता की ऐसी अनमोल नींव देता है, जो आगे चलकर महान व्यक्तित्व का आधार बनती है।संयम पथ ग्रहण करने वाले महाराष्ट्र भिवंडी से जुड़वा दो बाल मुमुक्षु शील और संयम ने दक्षिण पालीताणा तीर्थ में दर्शन किए। दोनों ने तीर्थ स्थल में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर का आशीर्वाद ग्रहण किया।
आचार्य ने कहा कि बाल दीक्षा तप, त्याग और शुद्ध आचरण को स्वभाव में ढाल देती है, जिससे साधक भविष्य में समाज का प्रेरणा-स्तंभ और धर्म का उज्ज्वल रत्न बनता है। माता-पिता और कुल को भी इससे अनंत पुण्य और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। अंततः बाल्यावस्था की दीक्षा केवल इस जन्म की नहीं, जन्म-जन्मांतरों का कल्याण कराने वाला दुर्लभ अवसर है। ट्रस्ट मंडल की ओर से मुमुक्षुओं का बहुमान किया गया।